पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/६०

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गोरख-वानी] ३७ नाद हमारै बावैः कवन, नाद बजाया तुटै पवन । अनहद सवद बाजता रहै, सिध संकेत श्री गोरष कहै ॥ १०६ ।। सुणि गुणवंता सुणि बुधिवंता, अनंत सिधां की बांणीं । सीस नवावत सत गुर मिलिया, जागत रैंणि विहांणी ॥ १०७ ॥ भिष्या हमारी कामधेनिार बोलिये, संसार हमारी13 बाड़ी। गुर परसादै ४ मिष्या षाइबा५, अंतिकालिन होइगी भारी १०८ लौह (ब्रह्मरंध्र) ने पानी (रेतस्) को सोख लिया। चन्द्रमा (इका नादी और सूर्य (पिंगला ) दोनों को अपने घर (सुपुग्णा) में रक्खा, निमज्जित कर दिया । ऐसा (जो जोगी करे ) वह स्वयं अलक्ष्य और विज्ञानी (ब्रह्म) हो जाता है। बिनांणी-विज्ञानी ॥ १०५॥ कौन हमारे शृंगीनाद धजावै। शृंगो नाद बजाने से तो श्वास टूटने लगता है। (और इसकी प्रावश्यकता भी क्या है जब हमारे श्राभ्यंतर में अनाहत नाद निरंतर बजता रहता है ) भृगौनाद बजे न बजे, अनाहत नाद बजता रहे। श्री गोरखनाथ ऐसा सिद्ध संकेत कहते हैं ॥ १०६ ॥ गुणवानो! सुनो, बुद्धिमानो! सुनो, अनंत सिद्धों की वाणी सुनो। सद्गुरु के मिलने और उन्हें सिर मुक्काने से ('आदेश' करने से ) यह जगत- रात्रि जागते जागते (ज्ञानमय अवस्था में ) बीत जाती है। जीव अज्ञान की नींद नहीं सोता ॥ १० ॥ भिक्षा हमारी कामधेनु है, उसी से हमारी पूर्ण तृप्ति हो जाती है। और संसार भर हमारी खेती है, हम किसी एक जगह से बंधे नहीं रहते। (किंतु मिक्षा भी स्वयं अपने निमित्त नहीं मांगी जाती, अन्यथा योग भी माँगने- । १. (ग), (घ) बाहै । २. (ख) कुण; (ग) कोण; (घ) कौण ३. (क) बजाये। ४. (ग) पवनां; (घ) पौण। ५. (घ) श्री गोषरनाथ । ६. (क) गुणिवंता । ७ (ख) नीवावत । ८. (ख) मीलीया; (ग), (घ) मिलीया । ६. (ग) जागति । १०. (क) भिदया । ११. (ग), (घ) हमारे। १२. (ख), (ग) कामधेन । १३. (ख) हमारे। १४. (ख) गुर परसादी; (ग), (घ) गुर के परचै । १५. (ग), (घ) षायगा। १६. (क) अंतकाल; (ख), (ग) अंतिकाल कवहु; (घ) अंतिकालि कबहू । १७. (घ) होयगी।