पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/७

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[गोरख-बानी 8 . है। वासियों द्वारा उपदेशों व सिद्धांतों के स्पष्टीकरण का निराला ढंग भी बराबर लक्षित होता रहता है । इसके सिवाय कबीर साहब आदि कई संत गुरु गोरख- नाथ के प्रति न्यूनाधिक श्रद्धा प्रदर्शित करते हुए भी जान परते हैं, और उन्होंने कई स्थलों पर इनके भावों शब्दों व वाक्यांशों तक को ज्यों-का त्यों अपनाया गुरु गोरखनाथ वा उनके पंथ के प्रभावों से हिन्दी के प्रेममार्गी सूफ़ी कवि भी अछूते नहीं, और हम देखते हैं कि जायसी ने 'पद्मावत' में राजा रतनसेन को योगी का रूप देते व सिंहलगढ़ को कायागढ़-सा वर्णन करते समय भी नाथ-पंथ के ही आदर्श वा पद्धतियों का स्पष्ट अनुसरण किया है, और एक प्रकार से उन्हीं के आधार पर अपना परिणाम तक निकाला है। गोरखनाथ व नाथ-पंथियों की हिन्दी रचनाएँ अभी तक अधिकतर हस्तलिखित रूप में ही पड़ी हुई हैं और उन्हें पढ़ने वा देखने तक का सुअवसर बहुत कम लोगों को मिल रहा है। बौद्ध सिद्धों की कई प्राचीन हिन्दी वा अप- भ्रंश की रचनाएँ सुदूर तिब्बत व नेपाल से प्राप्त की जाकर टीका-टिप्पणियों के साथ किसी न किसी रूप में छप चुकी हैं, और महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री, डाक्टर शहीदुल्ला, डास्टर बागची व श्री राहुल सांकृत्यायन ने उनके पाठभेद वा प्रामाणिकता पर भी न्यूनाधिक प्रकाश डाला है, किन्तु हिन्दी पुस्तकों की खोज वाले विवरणों से पता चलता है कि नाथ पंथ विषयक ऐसे तीसों ग्रंथ फुटकर वा संग्रहों के रूप में पड़े हुए हैं जिन्हें भलीभाँति संपादित करके, प्रकाशित करने को कभी चेष्टा भी नहीं की गई। अभी जहाँ तक पता है, केवल एक ग्रंथ 'गोरख- योध' व कुछ फुटकर पदों को लाहौर के डाक्टर मोहनसिंह ने अंग्रेजी अनुवाद व कुछ टिप्पणियों के साथ छपाया है। हाक्टर बड़थ्वाल ने, प्रस्तुत संग्रह में, उक्त ग्रंथ के साथ-साथ बहुत सी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं को भी संपादित कर 'गोर ग्वानी', के नाम से सर्वसाधारण के सामने लाने का प्रयत्न किया है 'गोरख-बानो' में संगृहीत रचनाओं के अंतर्गत हमें नाथ-पंथ के प्रायः मुख्य-मुख्य सिद्धांतों की बानगी देखने को मिलती है। गुरु गोरखनाथ का पंथ प्रसिद्ध पदर्शनों का सार-भाग लेकर चला है। उसके प्रवर्तक का इस बात में पूर्ण विश्वास है कि प्रात्मा की खोज में कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं, वह अपने भीतर-काठ के भीतर---अग्नि, बीज के भीतर वृक्ष एवं पुष्प के भीतर गंध की भाँति-ज्याप्त व अंतनिहित है। उन्होंने, प्राचीन हठयोग-पद्धति की अनेक बातों को स्वीकार करते हुए भी, उसकी बहुत सी क्रियाओं का अधि- > ,