पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/९०

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गोरख-बानी] जीवता बिछायवा' मुंवां वोढिबा कबहु न होयबारे रागी। वरसवै दिन काया पलटिवायू कोई कोई बिरला जोगी ॥१९३।। सूरजे५ षायबा चंद्रे सोयबा उभै न पीबा पाणी। जीवता कै तलि मूवा बिछायबा बोल्या गोरष बाणी ॥१९४|| जहां गोरप तहां ग्यांन गरीबी दुद१२ बाद नहीं कोई। निसप्रेही निरदावै धेलै१३ गोरष कहीयै सोई ॥१५॥ जो जीवित (अथवा प्राणों ) को विछाता और मरे हुए (जद शरीर) को श्रोढ़ता है (अर्थात् अपने साध्य मार्ग में दोनों को संयत और निकद रखकर उनसे साधनों का काम लेता है) वह रोगी कमी न होगा। इस प्रकार कोई बिरला 'योगी हो बरस दिन में काया पलट (काया कल्प ) कर सकता है। १६३ ॥ जब सूर्य का स्वर चलता हो तब भोजन करना चाहिए और जब चंद्रस्वर हो तब सोना चाहिए, किन्तु पानी दोनों में नहीं पीना चाहिए। जीवित (आत्मा) के नीचे मृतक ( जब शरीर ) को बिछाना चाहिए । (अर्थात् जड़ शरीर का उपयोग प्रात्मा के लाभ के लिए होना चाहिए,) गोरख ऐसी वाणी बोलता है ॥ १६४॥ जहाँ गोरख है, वहीं ज्ञान, और ज्ञानोद्भव दैन्य रहता है। वहाँ माया- कृत द्वैत भावना (द्वंद्व) नहीं होती और न वाद-विवाद ही होता है। गोरख अथवा परम योगी वह है जिसे कोई कामना (स्पृहा) न हो और जो बिना फल की इच्छा किये हुए निष्काम कर्म करे, (बिना दांव के खेले) ॥१६५॥ १. (ख) बीछाईवा; (ग) विछाईवा । २. (ग) होइगा। ३. (ख), (ग) पलटै; (ख) में इसके पहले का पाठ यों है-वरस दिन मैं तीनि बोरीया काया ४. (ख) सो को वीरला; (ग) यो कोई कोई विरला । ५. (ख) मरीज; (ग) सूरज । ६. (ख) चंद । ७. (ग) षाइबा सोइव । 5. (ख) पीयवा; (ग) पीवै । ६. (ख) तलै । १०. (ख) बीछाईवा । ११. (ग) यौ, (ख) में नहीं है। १२. (ख) अध; (ग) दूद । १३. (ख) पेलै