पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/९४

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गोरख-बानी] ६७ ५० १२ १७ अठयासी सहस्र रषीसर कंद्रप व्याप्या असाधि विष्न की माया। यंन कंद्रप ईस्वर महादेव नाटारंभ नचाया ॥ १६६ ॥ विष्न दस अवतार थाप्यो असाधि कंद्रप जती गोरषनाथ साध्या । जनि नीझर झरता राष्या ॥२००॥ आसति छैहो पिंडतानासति नांहीं अनभै होय परतीति निरंतरिमाही ग्यान पोजि अमे बिग्यान पाया।सतिसतिभाषेत सिध सतिनाथ राया माता हमारी मनसा बोलिये ० पिता बोलिये निरंजन निराकार । गुरू हमारे अतीत बोलिये जिनि किया पिंड का उधारं ॥ २०२ ॥ आपा मांजिबा१४ सतगुर बोजिबा'५ जोग पंथ न करिबा हेला। फिरि फिरि मनिषा जनम न पायबा करि लै सिध पुरिस सू मेला २०३ नाटारंभ, नाट्यारम्भ । नाट्यकला के अधिष्ठाता शिव माने जाते हैं शि, ने भी स्त्री की ॥ १६६ ।। विष्णु के अवतारों की स्त्रियों हुई ॥२०० ॥ नीझर झरता राष्या, सहस्रार स्थित चन्द्र से प्रस्त्रवित होते हुए अमृत निमर की रक्षा की, उसको सूर्य से शोपित किये जाने से बचाया ॥ २० ॥ आसति, अस्ति, श्रास्तिकता का भाव । पिंडता, पंडित । नासति, नास्ति, नास्तिकता का भाव ॥ २० ॥ मनसा, इच्छा, माया । अतीत, योगी ॥ २०२॥ अहंकार को तोड़ना चाहिए, सद्गुरु की ढूंढ करनी चाहिए। योग-पंथ को उपेक्षा नहीं करनी चाहिए | फिर फिर मानव योनि नहीं मिलती। इसलिए सिद्ध पुरुषों का सत्संग कर लो ॥ २०३ ॥ १. (ग) सहस्र । २. (ग) रूषीस्तुर । ३. (ग) इनि कंदरप ईश्वर । ४. (ग) विष्नु । ५. (ग) में 'असाधिराष्या? नहीं। ६. (ग) हों पंडिता नासती । ७. (ग) ग्यानं । ८. (ग) बीग्यांन । ९. (ग) में संतनाथ राय । १०. (ग)बोलिनै (घ) में सर्वत्र 'बोलीए' । ११. (ग) अती पुरुष । १२. (ग) कीया । १३. (ग) प्यड । १४. (ख) अाप न भाजिबा; (ग) आपा भाजिबा । १५ (ख) पुजिवा । १६. (ग) मानषा । १७. (ख) पुरिषस्य; (ग) पुरिष स्यौं ।