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१०४ ]
गोरा

१०४ ] गोरा हैं, जो बाढ़के तीन बेगकी भाँति जीवन मृत्युको बातकी बातमें पार कर जाते हैं। तुम्हारी बात सुनकर आज मन ही मन उनका कुछ कुछ. अनुभव कर सका हूँ। तुम्हारे जीवनकी इस अभिज्ञताने मेरे जीवनको चोट पहुंचाई है। तुमने जो अनुभव किया है, वह मैं किसी दिन समझ सकुंगा या नहीं यह मैं नहीं जानता किन्तु मैं जो पाना चाहता हूँ उसके स्वादका कुछ अनुभव मानों तुम्हारे अन्तःकरण के ही द्वारा मैंने किया है। यह कहता हुआ गोरा चटाईसे उठकर छत पर टहलने लगा। पूर्व दिशा की उध:कालिक स्पच्छता उसके पास मानो एक प्राकृतिक वाक्यकी भाँति प्रकट हुई । मानो तपोवनका एक वेदमन्त्र उसके सामने प्रत्यक्ष हुना। उसका सम्पूर्ण शरीर कण्टकित हो गया। कुछ देर तक वह ठिठक कर खड़ा हो रहा ! क्षण भर के लिए उसे ऐसा लगा मानो उसके ब्रह्म रन्ध्रको मैदकर एक ज्योतिरेखा, सूक्ष्ममृणाल की तरह, ज्योतिर्मय शतदल में समस्त आकाशमे-परिल्याप्त होकर विकसित हो गई । उसके प्राणं, समस्त चेतना और शारी शक्ति सब मानों इससे एकाएक परम आनन्दमें निःशेष हो गये। कुछ देर पीछे जब वह प्रकृतिस्थ हुआ तब सहसा बोल उठा-विनय तुम्हें इस प्रेमको भी लाँधकर मेरा साथ देना होगा । मैं कहता हूं कि वहाँ उलझनेसे काम न चलेगा। मुझे जो महाशक्ति अपनी ओर बुला रही है, वह कितनी बड़ी प्रभावशालिनी है, और कितनी सत्य है यह किसी दिन मैं तुमको दिखाउँगा। मेरे मन में आज बड़ा हर्ष हो रहा है । मैं अब तुमको किसीके हाथमें जाने न दूंगा ! अब मैं तुम्हे छोड़ नहीं सकता। विनय चटाई को छोड़कर गोराके पास आ खड़ा हुआ । गोराने उसे एक अपूर्व उत्साहके साथ दोनों हाथोंसे आलिंगन कर कहा-विनय, हम तुम दोनों एक साथ जिएंगे-मरेंगे; हम दोनों एक होकर रहेंगे। हम दोनोंको कोई जुदा नहीं कर सकेगा। 1