पृष्ठ:गोरा.pdf/१०८

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वरदासुन्दरीने कहा-आप सुचरिताका ब्याह कहीं करेंगे या नहीं ? परेश बाबूने अपने स्वाभाविक शान्त गम्भीर भाव से कुछ देर तक पकी दादी पर हाथ फेरा पीछे कोमल स्वरमें कहा-कहीं लड़का मिले भी तो। वरदासुन्दरी-क्यों पानू बाबू के साथ उसके ब्याहकी बात तो ठीक हुई है। हम सब पहले से यह बात जानते हैं-सुचरिता भी जानती है। परेश-मैं जहाँ तक जानती हूं मुचरिता पानू बाबू को पहले से नहीं चाहतीं। वरदासुन्दरी-यह बात मुझे अच्छी नहीं लगती। सुचरिता को मैं अपनी लड़कियांसे कमा अलग करके नहीं देखती । इसीसे मैं यह साहस करती हूं कि वे भी तो कुछ ऐसे वैसे नहीं हैं । पानू बाबू के समान विद्वान धार्मिक पुरुष अगर उसे चाहते हैं तो क्या यह उसके लिए कम सौभाग्यकी बात है ? यह अवसर क्या हाथसे जाने देने योग्य है ? श्राप चाहे जो कहें मेरी लावण्य तो देखने में उससे कहीं अच्छी है किन्तु मैं आप से कहे देती हूँ कि हम जिसे पसन्द करेंगी वह उसी के साथ व्याह करेगी कमी "नाही" न करेगी। आप यदि सुचरिताके दिमाग को आसमान पर चढ़ा दें तो फिर उसके लिए वर मिलना कठिन होगा। परेश बाबू इस पर कुछ न बोले । वरदासुन्दरी के साथ वे कभी विवाद न करते थे । विशेषकर सुचरिता के सम्बन्ध में सतीशको जनमाकर जब सुचरिता की माँ मर गई तब सुचरिता सात वर्ष की थी। उसका पिता रामशरण हवलदार, स्त्रीकी मृत्यु के बाद, ब्रह्म समाजमें जा मिला । बाद में लोगों के अत्याचारसे तङ्ग आकर, वह ढाका चला गया ! वह जब वहाँ के डाकघर में काम करता था तब परेशबाबू