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गोरा

गोरा [ १७ मन कई दिनोंसे विकल था अतः वह अपने उन साथियोंके घर न जा सकता था। अाज सवेरे ही विनयको साथ ले वह बढ़ईके टोलेमें जा पहुंचा। नन्दके दोमञ्जिले खुले घरके फाटकके पास आतेही उसे भीतरसे स्त्रियों के रोने का शब्द सुन पड़ा। नन्द का बाप या और कोई बन्धु-बान्धव घर पर न था । एक तमाखू की दुकान थी। दूकानदार ने आकर कहा--नन्द आज सवेरे मर गया, सब लोग उसे दाह करने के लिए ले गये हैं। नन्द मर गया ? ऐसा स्वस्थ, ऐसा हट्टा-कट्टा जवान, ऐसा तेज, ऐसी शक्ति, ऐसा प्रौढ़ हृदय, इतनी थोड़ी उम्र-वहीं नन्द अाज सबेरे मर गया है। गोराके सारे बदन में सन्नाटा छा गया। वह पत्थर की मूर्ति की माँति खड़ा रहा । नन्द एक साधारण बढ़ई का लड़का था। उसके अभावमें उसके साथियों को कुछ काल के लिए संसार सूना सा दिखाई देने लगा है। उसकी मृत्यु पर शोक करने वालोंकी संख्या अवश्य कम होगी; किन्तु आज गोरा की दशा विचित्र हो गई है। उसे नन्द की मृत्यु बिलकुल असंगत और असम्भव मालूम हुई । गोराने उसे बड़ा ही दिलेर देखा था, वह वास्तव में एक प्रौढ़ हृदय का मनुष्य था -इतने लोग जीते हैं किन्तु नन्दका दृढ़ जीवन कहीं देखने में नहीं आता ! उसकी मृत्यु कैसे हुई ! इस वातके पूछने पर मालूम हुअा कि उसे पक्षाघात रोग हो गया था। नन्दके पिताने डाक्डर को बुलाना चाहा, किन्तु नन्दकी माँ ने कहा कि वेटे को भूत लगा है। भूत झाड़नेवाला अोझा सारी रात उसके पास बैठकर झाड़ फूंक और मार-पीट करता रहा । पर भूत ऐसा प्रवल था कि वह उसे पकड़कर ले ही गया। बीमारीके प्रारम्भ में गोरा को खबर देने के लिए नन्दने एक वार अनुरोध किया था। किन्तु इससे कि वह आकर डाक्टरी मतसे इलाज करनेके लिए जिद करेगा, नन्द की माँ ने किसी तरह गोराके पास खबर न भेजने दी। वहाँ से लौटते समय विनयने कहा-कैसी मूर्खता है। रोग क्या और इलाज क्या ।