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गोरा

१२८ गोरा विनयका विशेष भावसे पक्षपात नहीं है, तब उसके मनका वह विद्रोह दूर हो गया, उसे चैन पड़ी। फिर तो उसे भी विनय बाबूको असाधारण भला आदमी मानने में कोई बाधा नहीं रही। हारान बाबू विनयसे विमुख नहीं हुए। उन्होंने जैसे सबकी अपेक्षा कुछ अधिक मात्रामें यह स्वीकार किया कि विनयको भलमंसी या भले आदमियोंक शिवचार व्यवहारका ज्ञान है । इस स्वीकृत की खास ध्वनि यही थी कि गोरा इस ज्ञानसे बिल्कुल शून्य है। विनय कभी हारान बाबूके सामने कोई वहसकी बात नहीं उठाता था सुचरिताकी भी यही चेष्टा देखी जाती थी कि ऐसा कोई तर्क उनके सामने ना उठाया जाया । इसी कारण इस वीचमें विनयके द्वारा चायके टेबिल पर शन्ति भंग नहीं होने पायी । मगर हारान वाकी गैरहाजिरमें सुचरिता प्रापही छेड़ कर विनयको उसके अपने समाज सम्बन्धी मतकी चर्चा और आलोचनामें प्रवृत्त करती थी । नुचरिताके ननमें यह जाननेका जो कौतूहल था कि गोरा और विनय के ऐसे शिक्षित पुरुष कैसे देशके प्राचीन कुसंस्कारोका समर्थन कर सकते हैं उसे वह किसी तरह दमन नहीं कर सकती थी। गोरा और बिनयको वह अगर न जानती होती तो उन सब मतोंका समर्थक जान लेने पर दूसरी कोई बात न सुन कर उन्हें अवज्ञाके योग्य ठहरा लेती। किन्तु गोराको जबसे उसने देखा तवसे वह गोराको अश्रद्धाके साथ अपने हृदयले दूर नहीं कर पाती । इसीसे सुयोग पाते ही वह धुमा फिराकर विनयके आगे गोराके मन और जीवनकी बालोचना शुरू कर देती है, और बीच बीचमें विनयकी याताका प्रतिवाद करके सब वाते अन्त तक उसके पेटसे बाहर निकाल लेती हैं। परेश बाबू समझते थे कि सब सम्प्रदायोंका मत नुनने देना सुचरिताकी सर्वतोमुखी सुशिक्षाका सहज उपाय है। इसी कारण वह ऐसे सब तर्क वितर्कोसे कभी शङ्कित नहीं हुए, और न वाधा ही दी। एक दिन सुचरिताने पूछा-गौर बाबू क्या सचमुच जाति मेद मानते