पृष्ठ:गोरा.pdf/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ १२९
गोरा

गोरा [ १२६ हैं या केवल देशानुराग दिखानेके लिये ही ऐसा करते हैं ? विनयने कहा-आप क्या सीढ़ीके स्तरोंको मानती हैं ? ये भी तो सब वैसे ही विभाग है-कोई ऊपर है कोई नीचे। सुरचिता-नीचे से ऊपर चढ़नेके लिये मानना ही.पड़ता है- नहीं तो मानने का कोई प्रयोजन नहीं था। समतल भूमि में सीढ़ी न माननेसे भी काम चल सकता है। विनय---ठीक कहा आपने -हमारा समाज मी एक सीढ़ी है इस जाति-भेद या वर्णाश्रम विभाग का एक उद्देश्य था और वह है नीचेसे अगर उठा देना-मानव जीवन के एक रिमाम में ले जाना। यदि हमारी यह धारणा होती कि समाजका परिणाम यह संसार ही है तो किसी विभागकी व्यवस्थाका प्रयोजन ही नहीं था; तब तो बोरुपियन समाज की तरह हममें से हरएक दूसरे की अपेक्षा अधिक पर अधिकार जमाने के लिये छीना झपरी और मार काट करता रहता । सुचरिता-~~-आपको वाते मेरी समझ में नहीं आई। मेरा प्रश्न यह कि आप जिस उद्देश्यसे समाजमें वर्ण भेदका प्रचलित होना बता रहे हैं क्या उस उद्देश्यको श्राप सफल हुआ देख रहे हैं ? विनब-~-पृथ्वी पर सफलताकी सूरत देख पाना बड़ा कठिन है भारत ने जो जाति मेदके नामसे समाजिक समस्या का एक महत्वपूर्ण उत्तर दिया है वह उत्तर अभी मरा नहीं है...वह अब भी पृथ्वीके सामने मौजूद है। योरप भी समाजिक समस्याका कोई ठीक और अच्छा उत्तर अभी तक नहीं दे सका। वहाँ केवल ठेला-ठेली और हाथा-पाई हो रही है भारतवर्षका पूर्वोक्त उत्तर मानव- समाजमें भी सफलताके लिए प्रतीक्षा किए हुए हैं। सुचरिता ने संकोच के साथ पूँला-आप नाराज न हो, सच कहिएगा; ये सब बातें आप गौर बाबू की प्रतिध्वनिकी तरह-भरे हुये ग्रामोफ़ोन की तरह-कह रहे हैं, या स्वयं इनपर सम्पूर्ण विश्वास मी रखते हैं ? विनयने हँसकर कहा-चोराकी तरह मेरा विश्वास जोरदार नहीं है। फ० नं. ६ -