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गोरा

गोरा विनय-मैं दिलको निन्दाके बारे में नहीं कहता मैं व्यक्तिगत निन्दा की बात कहता हूं। गोरा--किसी एक दल को निन्दा तो निन्दा ही नहीं है। वह तो मतामत का विचार है। व्यक्तिगत निन्दा ही चाहिये । अच्छा साधुपुरुष जी-"ब्राझोंकी पहले तुम निन्दा नहीं करते थे ?" विनय-करता था । खूब ही करता था लेकिन उसके लिए मैं अब लञ्जित हूं। गोरा ने अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी खूब कड़ी करके कहा-ना विनय, यह नहीं होगा किसी तरह नहीं। विनय ने कुछ देर चुप रह कर कहा-क्या क्या हुआ ? तुन्हें भय काहे का है। गोरा--मुझे खष्ट ही दिखाई पड़ रहा है कि तुम अपने हृदय को दुर्वल बना रहे हो। विनय ने कुछ उत्तेजित होकर कहा-दुर्बल ? तुम जानते हो, मैं चाहूँ तो अभी उन लोगों के घर जा सकता हूँ.-उन्होंने मुझे बुलाया भी था लेकिन मैं नहीं गया । क्या इसे दुर्बलता कहोगे ? गोरा-किन्तु यह बात तुम किसी तरह नहीं भूल सकते हो कि हुन नहीं गये, यही दुर्बलता है । दिन रात केवल यही सोचते हो कि मैं नहीं गया. लेकिन मैं नहीं गया । इसकी अपेक्षा चले जाना ही अच्छा था। विनय--तो क्या तुम जाने के लिए ही कहते हो ? गोरा ने अपनी जाँघ पर हाथ मार कर कहा-ना, मैं जाने को नहीं कहता । मैं तुमसे सत्य कहता हूं, जिस दिन तुम उनके घर जानोगे उस दिन एकदभ पूर्णरूप से जाओगे। उसके दूसरे ही दिन उनके घर खाना पीना शुरू कर दोगे और ब्राह्मसमाज के रजिस्टर में नाम लिखाकर एक इम दिग्विजयी महोपदेशक हो उठोगे विनय-कहते क्या हो उसके बाद ? गोरा-उसके बाद और क्या मसल है, मरने को कहने से बढ़कर