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'गोरा

१३२ गोरा (गुजरा हुआ) होनेके कारण वरखास्त किये बैठे हैं, इसीसे क्या वह अतीत हो गया है ? कोई सत्य कभी अतीत हो ही नहीं सकता। सुचरिताने कहा-याप जिस तरह ये सब बातें कह रहे हैं, उस तरह साधारण श्रादमी नहीं कहते इसी कारण आपके मनको समग्र देशकी चीज मान लेने में मनमें संशय होता है ! विनयने कहा-हमारे देश में साधारणतः जो लोग अपनेको हिन्दू कहकर उसका अभिमान करते हैं, मेरे मित्र गौर बाबूको श्राप उस दिल का आदमी न समझियेगा । वह हिन्दू-धर्मको भीतरकी ओरसे और बहुत बड़े रूपमें देखते हैं । वह कभी यह मनमें भी नहीं लाते कि हिन्दू धर्मका प्राण निहायत शौकीन प्राण है. -वह थोड़ी-सी छुआछूतसे ही सूख जाता है और साधारण पात-प्रत्याघातसे ही उसकी मृत्यु हो जाती है। सुचरिता--लेकिन जान तो यही पड़ता है कि वह खूब सावधान रह कर छूना-छूतको भान कर चलते हैं । विनय-उनकी यह सतर्कता एक अद्भुत वस्तु है । उनसे अगर प्रश्न किया जाय, तो वह फौरन कह देंगे- "हाँ मैं यह सब मानता हूँ कि छू जानेसे जाति जाती है, खा लेनेसे पार होता है; यह सब अचान्त सत्य है, लेकिन मैं जानता हूँ, ये सब उनका जबर्दता की बात है । ये सब बाते जितनी असंगत होता है, उतना हो वह सबको तुनाकर जोर से कहते हैं ! कहीं वर्तमान हिन्दू श्राचार की साधारण बातको भी अस्वीकार करनेसे अन्य मूढ लोग हिन्दू-अाचारकी बड़ी बात का भी असम्मान न कर बैठे और जो लोग हिन्दू अाचारको कुसंस्कार कह कर अश्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं, वे उसे अपनी जीत न मान बैठे, इसी भयसे गौर मिना कुछ विचार न्ये, सभी बातें नानकर चलना चाहते हैं । मेरे आगे भी इस सम्बन्धमें अपनी कुछ भी शिथिलता नहीं दिखलाना चाहते। परेश बाबू ने कहा-ब्राह्म लोगों में भी इस तरह के आदी बहुत हैं । इस शंकासे कि कहीं बाहर का कोई आदमी भूलकर यह न सममा बैठे कि वे हिन्दू धर्म की कुप्रथाओको भी स्वीकार करते है, वे हिन्दू बाबू