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गोरा [ १३७ इसी समय दीदी-दीदी कहता हुआ सतीश वहां दाखिल हुआ। विनय आज उसे किले के मैदान में सर्कस दिखाने ले गया था। यद्यपि अधिक रात बीत चुकी थी; तो भी बालक सर्कस देखने के उत्साह खुशी और विस्मयको सभाल नहीं पाता था। सर्कस का वर्णन करके उसने कहा--विनय बाबूको अाज मैं अपने ही यहाँ सोनेके लिये पकड़े लाता था। वह दरवाजे के भीतर आये थे मगर वैसे ही लौटे गये। दीदी, मैंने उनसे एक दिन तुम्हें भी सर्कस दिखाने के लिये ले जाने को कहा है। ललिताने पूछा---उस पर उन्होंने क्या कहा ? सतीशने कहा- उन्होंने कहा औरतें वाघ देखकर डर जायँगी। लेकिन दीदी मैं तो बिलकुल नहीं डरा । कहकर सतीश पौरपके अभिमान से छाती फुलाकर बैठ गया। ललिताने कहा-सो तो ठीक ही है ? तुम्हारे मित्र विनय बाबका साहस कितना बड़ा है यह खूब मेरे समझ में आ रहा है ।-ना भाई हम लोगों को साथ लेकर तुम्हे सर्कस दिखाने ले जाना ही पड़ेगा। सतीशने कहा--कल तो दिन को सर्कस होगा । ललिताने कहा-यह भी अच्छा है। हम दिन ही को जायगी। दूसरे दिन विनयके आते ही ललिता कह उठी-लो टीक समय पर ही विनय बाबू आये हैं ! चलिए । विनय-कहाँ चलना होगा ? ललिता-सर्कस सर्कस ! दिनके समय हजारों मदोंके सामने औरतीको लेकर सर्कस जाना ! विनय तो हतबुद्धि हो गया ! ललिताने कहा- शायद गौर बाबू हमें ले जानेसे खफा होंगे- क्यों विनय बाबू यही बात है न ? ललिता के इस प्रश्नसे विनय कुछ चौंक उठा । ललिता ने फिर कहा-सर्कस में औरतोको ले जाने के सम्बन्धमें गौर मोहन बाबूकी क्या कोई राय है !