पृष्ठ:गोरा.pdf/१३९

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[ १९ ] सबेरेके पहर गोरा कोई लेख लिख रहा था । विनवने एकाएक उसके पास आकर अव्यवस्थित मावसे कहा-मैं उस दिन परेश बाबू की लड़कियोको सर्कस दिखाने ले गया था। गोरा लिखते बोला--हाँ सुना है ! विनयने विस्मित होकर कहा-जुमने किससे सुना ? गोरा अविनाशसे । वह भी उस दिन सर्कस देखने गया था । गोराने पहले ही यह सुन लिया, सोभी अविनाशके मुँहसे, इसलिए उसमें टीका-टिप्पणी की कोई बात न रही। इससे चिरसंस्कार-वश विनयके मनमें विशेष सङ्कोच हुआ। सर्कसमें जानेकी यह बात इस प्रकार जन समाजमें प्रकट न होती तो वह खुश होता । इसी समय उसे स्मरण हो पाया कि कल रातकों देर तक जागते रहकर वह मन ही मन ललितासे झगड़ता रहा है । ललिता समझती है कि गोराको विनय उतना ही मानकर चलता है जितना कि विद्यार्थी अपने माल्टरको ! ऐसा अन्याय करके मी एक मनुष्य दूसरे को ठीक-ठीक नहीं समझ सकता । गोरा और विनयकी घनिष्ठमित्रता है । असाधारण गुणके कारण गोरा पर उसकी भक्ति है सही किन्तु इसी लिए ललिताने जो कुछ समझ रक्खा है वह गोरा और विनय दोनोंके साथ अन्याय है न तो विनय ही नावालिक है और न गोरा ही उसका अभिभावक है। गोराने लिखने में मन लगाया । विनय ने ललिताके दो तीन तीखे प्रश्नोंका मन ही मन स्मरण करने लगा। वह सहज ही उन प्रश्नोंको मनसे न हटा सका। सोचते ही सोचते विनयके मन में विद्रोहने सिर उठाया । सर्कस देखने गये तो क्या हुआ ? अविनाश कौन है जो उन बातोंके विषय में गोराके साथ आलोचना करने आता है ! अथवा गोरा ही मेरी गति विधिके सम्बन्धमें उस अकार्य-भाजन के साथ क्यों बातें करता है? क्या मैं गोरा १३६