पृष्ठ:गोरा.pdf/१४

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गोरा

1 १४ ] गोरा कोई गाली नहीं ! ब्राह्मण के लड़के होकर तुम बूचड़खाने में मरोगे, तुम्हारा श्राचार विचार कुछ नही रहेगा । जिसका कम्पास टूट गया है उस जहाज के कप्तान की तरह तुम्हारा पूर्व पश्चिम का ज्ञान लुप्त हो जायगा तुम्हें उस समय जान पड़ेगा कि जहाज को बन्दरगाह में ले जाना ही कुसंस्कार है, संकीर्णता है। केवल नाहक सागर जल में बहते रहना ही दथार्थ जहाज चलाना है, समझे ? किन्तु इन सब बातों को लेकर बकवक करने में मेरा धैर्य नष्ट हो जाता है। मैं कहता हूँ, तुम जाओ! इस तरह अंधःपात के मुख के सामने पैर बढ़ाकर खड़े-खड़े हम सब को भी क्यो भय के आवर्त में डाल रक्खा है ? विनय-हँस उठा बोला- यह बात नहीं है कि डाक्टर के पासा छोड़ देने पर सब समक्ष रोगी की मृत्यु ही हो जाती हो । मुझे तो ऐसी धार्मिक नृत्यु के निकटवर्ती होने का कोई लक्षण अपने में नहीं देख पड़ता। कम से कम मैं नहीं देख पाता। गोरा--नहीं देख पाते? विनय गोरा-~-तुम्हें नाड़ी छूटती नहीं जान पड़ती ? विनय-ना, मेरी नाड़ी खूब सबल है और ठीक चल रही है। गोरा यह नहीं जान पड़ता कि वे श्री हाथ अगर परोसें तो म्लेच्छ का अन्न ही देवता का प्रसाद है ? विनय अत्यन्त संकुचित हो उठा । उसने कहा"-गोरा बस अब चुप रहो।" नारा-इसमें तो इज्जत-आबरू की कोई बात नहीं है। वे श्री कर काल असुर्यम्पश्य ( जिन्हें सूर्य तक न देख सकें ) तो हैं ही नहीं। जिस समाज में स्त्रियां मदों से हाथ मिला सकती है उस समाज के सुपवित्र कर-पल्लवों का उल्लेख तक जब तुमसे सहा नहीं जाता तब कहना ही पड़ता है कि "तदान संशे भरणाय संजय