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गोरा

गोरा [ १४१ ऐसी कोई विशेष घटना न थी, किन्तु बहुत दिनके प्रभुत्वकी बात सोचकर ही विनयकी यह अवस्था हो रही है। वह केवल घनिष्ट प्रेम और नितान्त भलमनसीके कारण गोराकी झिड़की और हुकूमत सहनेको अभ्य- स्त सा हो गया है । इस कारण यह प्रभुत्वका सम्बन्ध ही मित्रताके सिर पर चढ़ बैठा है। इतने दिन तक विनयने इसका अनुभव नहीं किया था, किन्तु अब अनुभव करने ही से क्या हो सकता है ? अब इसे अस्वीकार करते भी तो नहीं बनता । तो क्या शशिमुखांके साथ ब्याह करना ही होगा ? विनयने कहा-जी नहीं, चाचाजी पास तो अभी तक चिट्ठी नहीं भेजा। महिम-यह मेरी ही भूल है। यह चिट्ठी तो तुम्हारे लिखनेकी नहीं है-यह मैं ही लिखू गा । उनका नाम और पूरा पता क्या है ? विनय [-याप घबराते क्यों है ? आश्विन या कार्तिकमें तो विवाह हो नहीं सकेगा। रहा अगहन-सो उसमें भी एक बाधा है। मेरे वंशमें, बहुत समय पहले, अगहन में न मालूम कय क्या दुर्घटना हुई थी। तबसे मेरे कुल में अगहन में विवाह आदि कोई शुभ कर्म नहीं होता। महिमने हाथ का हुका घरके कोने में रखकर कहा--विनय, तुम लोग यदि ये वातें मानोगे तो इतना पढ़-लिखकर क्या किया ? एक तो इस मनहूस देशमै शुभ मुहूर्त खोजने से भी नहीं मिलता इस पर फिर घर- घर पत्रा खोलकर बैठने से संसार का काम कैले चलेगा ? विनय---तो आप भादों या आश्विनको ही क्यों निषिद्ध मानते हैं ? महिम-कौन कहता है कि मैं मानता हूँ ! कभी नहीं । परन्तु मैं करूँ क्या । इस देशमें भगवानको न मानने से कोई हर्ज नहीं किन्तु भादों, आश्विन, शनि, वृहस्पति, तिथि और नक्षत्र न मानने से कोई घरमें भी न रहने देगा। फिर भी मैं जो कहता हूँ कि मैं नहीं मानता सो ठीक है; किन्तु कोई काम करते समय मुहूर्त ठीक न होने से मन अप्रसन्न हो जाता है। देशकी बिगड़ी हवाले जैसे मलेरिया होता है, वैसे ही यह डर भी। इसे मैं किसी तरह दूर नहीं कर सकता।