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१४४ ]
गोरा

१४४ ] गोरा विनयने आते ही कहा---माँ, शशिमुखीके साथ व्याहके सम्बन्धमें मैंने आज सवेरे गोरासे जो कुछ कहा है उसका कोई अर्थ नहीं। आनन्दमयीने कहा-एक जगह रहनेसे आपसमें कभी कभी खटपट हो ही जाती है। मनके भीतर किसी व्यथा का बोझ होने से वह इसी तरह बाहर निकल पड़ता है । यह अच्छा ही हुन्ना । मनका मैल निकल जाना ही अच्छा है। इस झगड़े को बात दो दिन बाद तुम भी भूल जानोगे, गोरा भी भूल जायगा । विनय-किन्तु मां, शशिमुखीके साथ ब्याह करने में मुझे कोई उन्न नहीं है यही मैं तुमसे कहने आया हूँ । आनन्दमयी -- पहले इस झगड़े को मिटा लो; जब तक झगड़ेकी, बात नहीं मिटती तव दूसरे झंझटमें मत बड़ो । ब्याह गुड़िया का खेल तो है नहीं, वह सम्बन्ध सदाके लिये होगा । झगड़ा तो दो दिन का है । विनयने इस बात को न माना । वह इस प्रस्ताव को लेकर गोरा के पास न जा सका, परन्तु महिमसे जाकर बोला-त्रिवाहके प्रस्तावमें कोई बाधा नहीं -माघ महीमें में यह कार्य हो जायगा । चाचाजीकी इसमें असम्मति न होगी, यह भार मैं अपने ऊपर लेता हूँ। महिमने कहा-तो फल दान हो जाय । विनय--अच्छा, यह आप गोरा से सलाह लेकर करें। महिम --फिर गोरा से सलाह लेने को कहते हो ? विनय-बिना उससे सलाह किये काम न चलेगा। महिम-न चलेगा, तब तो आखिर सलाह लेनी ही होगी। किन्तु" यह कर उन्होंने डिब्बसे पान निकालकर मुंहमें रक्खा । --lo! -