पृष्ठ:गोरा.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४६ ]
गोरा

१४६ गोरा उसी दिन अर्थात् झगड़े के दूसरे दिन तोसरे पहरको, गोरा विनय के घर आ पहुँचा । विनयको यह आशा न थी कि गोरा आज ही आवेगा । इस कारण उसके मन में खुशीके साथ साथ आश्चर्य भी हुआ। इससे भी बढ़कर आश्चर्यका विषय यह था कि आनेके साथ ही गोराने परेश वाबूकी लड़कियोंकी चर्चा छेड़ दी। फिर उस पर चमत्कार यह कि उसमें श्राक्षेपकी किंचित्मात्र गन्ध न थी? यह आलोचना विनय को उत्तेजित करने के लिए यथेष्ट था, किसी विशेष चेष्टा को आवश्य- कता न हुई। दोनों मित्रोमें उस दिन घूम फिरकर परेश बाबूकी लड़कियों के विषय में वातालाप होते होते रात हो गई। गोरा अकेला घर लौटते समय रास्ते में इन सब बातों को मन ही मन सोचने लगा और घर आकर जब तक उसे विछौने पर जाकर नीद न आई तब तक वह परेश बाबू की लड़कियोंको वातको मनसे दूर न कर सका । गोरा के जीवन में यह आज नई घटना है। इसके पहले आज तक कमी उसके मन में स्त्रियोंकी बातने स्थान नहीं पाया था। अनेक सांसारिक व्यवहारामें यह भी एक चिन्ताका विषय है, इसे विनयने इस दफे प्रमाणित कर दिया । यह बात अब किसा तरह उड़ाई नहीं जा सकती। वा तो इसका रक्षा करनी होगी या इसके विरुद्ध युद्ध करना होगा। दूसरे दिन विनयने जब गोरासे कहा--परेश बाबूके घर एक बार चलो न, बहुत दिनसे नहीं गये हों; वे बरावर तुम्हारी वात पूछा करते है तब गोरा बिना कुछ उन किये जाने को राजी हो गया ? सिर्फ राजी ही नहीं हुआ, उसके साथ कुछ उत्सुकता भी थीं। पहले सुचरिता और परेशबाबूकी कन्याओं के स्थिति के सम्बन्ध में यह बिलकुल उदासीन था, किन्तु अब उसके मनमें एक नये कुतूहलका भाव उत्पन्न हुआ है। विनयके चित्तको वे कैसे इस तरह अपनी ओर खींच रही हैं यह जानने के लिए उसके मनमें विशेष अाग्रह हुआ।