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गोरा

T १४८ ] गोरा कान में कह गये--तुम इनके साथ कुछ देर बैठो; जहाँ तक होगा में शीघ्र ही पाता हूँ। देखते ही देखते गोरा और हारान बाबू के बीच भारी शास्त्रार्थ छिड़ गया। जिस विषय पर तर्क चला था वह यह था;- कलकत्तेके निकटवत्ता किसी जिले के मैजिस्ट्रेट ब्रैडला साहबसे परेश बाबको ढाके में भेट हुई थीं। परेश बाबूकी स्त्री और लड़कियाँ पर्देका लिहाज न रखकर बाहर निकलती थीं, इसस खुश होकर साहब और मेम दोनों उनको बड़ी स्वातिर करते थे । साहब अपने जन्म-दिनको हरसाल कृषि प्रदर्शिनी का मेला कराते थे। इस दफे बरदासुन्दरीने ब्रडला साहक्की मेमसे भेंट करके उसके आगे अंग्रेजी काव्य-साहित्य में अपनी लड़कियोंकी विशेष योग्यता का वर्मन किया। यह सुनकर नेम साहबाने कहा---'अबकी बार के मेले में छोटे- लाट साहब अपनी मेम के साथ आवेंगे। आपकी लड़कियाँ यदि उनके सामने एक अाध छोय सा कोई अँग्रेज़ी नाटक खेलें तो बड़ा अच्छा हो।' इस प्रस्ताव पर वरदासुन्दरी अत्यन्त उत्साहित हो उठी। आज वह अपनी लड़कियों के अभ्यास की जाँच करानेके लिये किसी मित्र के घर गई हैं। इस मेलेमें गोरा आवेगा या नहीं ? यह पूछने पर गोरा कुछ अनावश्यक उग्रता के साथ बोला-"नहीं।" इस प्रसंग पर, इस देशके अँग्रेज़ों और बङ्गालियों के बीच क्या सम्बन्ध है और परस्पर सामाजिक सम्मेलनमें कौन सी बाधा है इस विषय पर दोनोंमें प्रचण्ड वादविवाद उपस्थित हुआ। हारान बाबूने कहा-बङ्गालियोंका ही दोष है । हम लोंगोंमें इतने कुसंस्कार और कुप्रथाएं हैं कि हम लोग अँग्रेज़के साथ मिलने योग्य नहीं रहे। गोरा--अगर यही सच है तो उस अयोग्यता के रहते भी अँगरेजके साथ मिलने के लिए लार टपकाते फिरते हमारे लिए बड़ा लज्जाका विषय है। हारान-किन्तु जो योग्य है वे अँगरेजोंके यहाँ यथेष्ट सम्मान पा रहे हैं -जैसे ये लोग।