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गोरा

. गोरा [१५ विनय देखो गोरा, मैं स्त्री जाति को भक्ति की दृष्टि से देखता हूँ। हमारे शास्त्र में भी ऐसा ही लिखा है। गोरा-तुम जिस भाव से स्त्री जाति को भक्ति की दृष्टि से देखते हो, उसके लिए शास्त्र की दुहाई न दो । उसे भक्ति नहीं कहते। उसे जो कुछ कहते हैं वह अपर जवान पर लाऊँगा तो शायद तुम मारने ही दौड़ोगे। विनय-यह सब तुम शारीरिक बल के जोर पर कह रहे हो, जब- दस्ती कर रहे हो। गोरा-शास्त्र में लियों के लिए कहा है.---"पूजाहाँ गृहदीप्तयः ।। स्त्रियां पूजा के योग्य है । कारण, वे गृह को प्रकाशित करती है। किन्तु मर्दो के हृदय को प्रकाशित या प्रदीप्त कर देती है, इसलिए विलायती विधान से उन्हें जो मान दिया जाता है उसे पूजा न कहना ही अच्छा है । विनय -किसी किसी जगह ऐसी विकृति देखी जाती है, इसीलिए क्या एक ऊँचे दर्जे के भाव पर इस तरह का कटाक्ष करना उचित है ? गोरा ने अधीर हो कर कहा--विनय, इस समय जब तुम्हारी विचार करने की बुद्धि चली गई है, तब मेरी बात मान ही लो । मैं कहता हूँ, विलायती शास्त्र में स्त्री जाति के सम्बन्ध में जो सब अत्युक्तियां हैं, उनके भीतर की बात है वासना ( विषय-भोग लालसा ) । स्त्री जाति की पूजा करने का स्थान है माता का घर, सती लक्ष्मी-स्वारूपिणी गृहणी का श्रासन । उन्हें वहां से हटा ला कर जो उनकी स्तुति की जाती है, उसके भीतर अपमान निहित है, उसको निन्दास्तुति भी कह सकते हैं । जिस कारण से तुम्हारा मन पतङ्ग की तरह परेश बाबू के घर के इर्दगिर्द चक्कर लगा रहा उसे अँगरेजी में 'लव' (प्रेम) कहते हैं किन्तु मैं चाहता हूँ कि ऐसा पागलपन तुम्हारे सिर पर सवार न हो जाय कि अँगरेजों की नकल करके उस 'लव' को ही संसार चरम या परम पुरुषार्थ मान कर उसी की उपासना करने लगी। विनय कोड़े की चोट खाये हुए बछड़े की तरह उछल पड़ा, और बोला-"श्राः गोरा; बस रहने दो, बहुत हो गया।"