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गोरा

१५८ गोरा "जी नहीं, कुछ भी नहीं । विनय, तुम ठहर जाओ, मैं जाता हूँ। यह कहकर गोरा चला गया। विनयके लौटकर बैठते ही ललिताने कहा- विनय बाबू अाज अापके भाग जाने ही में कुशल थी। विनय-क्यां? ललिता-माँ आपको एक विपत्ति में डालना चाहती हैं। मैजिस्ट्रेट के मेलेमें जा अभिनय होगा, उसमें एक आदमी कम हो गया है। माने आपहीको चुना है। विनय धबड़ाकर बोल उठा--राम राम ! यह क्या किया उन्होंने। यह काम मुझसे न होगा। ललिता ने हंसकर कहा -यह तो मैं माँसे पहले ही कह चुकी हूँ। इस नाटक में आपके मित्र कभी आपको सम्मिलित न होने देंगे। विनयन चाट खाकर कहा--मित्रको बात जाने दो। मैंने सात जन्ममें भी कमी अभिनय नहीं किया। मुझे क्या चुनती हो ? इसा समय वरदासुन्दरी कमरे से भीतर या बैठीं । ललिता ने कहा... माँ, तुमने अभिनय में विनय बाबू का व्यथं साथ कर लिया। पहले इनके मित्रको रानी कर लेता तब- विनयने कुछ कातर होकर कहा-मित्रको राजी कर लेनेकी बात नहीं है । अभिनय तो अाज तक मैंने कभी किया ही नहीं और मुझमें वह योग्यता भी नहीं है। वरदासुन्दरी-उसके लिये आप चिन्ता न करें। मैं आपको सिखा- पढ़ाकर ठीक कर लूगी। छोटी छोटी लड़कियाँ अभिनय कर सकेंगी और आप न कर सकेंगे? विनयके उद्धार का कोई उपाय न रहा । -