पृष्ठ:गोरा.pdf/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ २१ ]

[ २१ ] गांरा अपनी स्वाभाविक तेज चाल छोड़कर सोचता हुआ धीरे धीरे घरको चला। घर जाने के सीधे रास्तेको छोड़कर, बहुत फेरके साथ, गङ्गा-तट की राह पकड़ ली । बहुता रात बीते बब गोरा घर पहुंचा तब अानन्दमयी ने पूछा- इतनी रात कर दी वेद्या; तुम्हारो व्यालू रक्खे रखे ठण्डी हो गई। गोराने कहा-क्या जाने माँ, आज क्या खवाल या गया, बहुत देरसे गंगाक किनारे बैठा हुआ था । आनन्दमयी |----जान पड़ता है, विनय साथ था। गोरा- नहीं तो मैं अकेला ही था । आनन्दगयी मन-ही मन कुछ विस्मित हुई । बिना कुछ कामके गोरा इतनी रात तक गंगाके किनारे बैठ कर कुछ सोचता रहे, ऐसी घटना तो आज तक कभी हुई नहीं। चुपचाप बैठ कर सोचनेका तो उसका स्वभाव ही नहीं है। गोरा जिस समय अनमना सा होकर भोजन कर रहा था, उस समय आनन्दमयीने ध्यान देकर देखा, उसके चेहरे पर जैसे एक न जाने कैसे चंचल भावकी उत्तेजना है। अानन्दमयीने कुछ देर बाद धीरे-धीरे पूछा-याज शायद विमयकं घर पर गये थे। गोराने कहा-नहीं, आज हम दोनों परेश बाबू के यहाँ गये थे। सुनकर आनन्दमयी चुपके बैठकर सोचने लगी फिर पूछा -उनके यहाँ सब लोगों से तुम्हारा मेल जोल हो गया। गोरा--हाँ, हो गया : अानन्द-~-उनकी औरतें शायद सबके आगे निकलती है ? १५६