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गोरा

। गोरा [१६३ चाहता ! मैं तुम्हारी दृष्टि में जैसा बहुमूल्य अँचता हूँ वैसा और की दृष्टि में नहीं । तब इस गठरी पर यदि किसी को लोभ होगा तो यह उसे देकर चला आऊँगा; इसकी रक्षा के पीछे पाए थोड़े ही दूंगा। गोरा ने श्रानन्दमयी के पैर छूकर प्रणाम किया। उसने उसके मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। उसकी यात्रा में किसी तरहकी बाधा न दी। अपने काट होनेकी बात सोच कर या किसी तरहके अनिष्ट की आशङ्का करके आनन्दमयी कभी किसी को न रोकती थी। वह अपने जीवन में अनेक बाधाओं और विपत्तियोंके बीच होकर आई है। बाहरी संसार उसके लिए अज्ञात नहीं है उसके मनमें भय न था । गोरा किसी विपत्ति में पड़ेगा, यह आशङ्का भी न थी। किन्तु गोराके मनमें जो एक प्रकार का नया विप्लव हो पड़ा है, इस बात का सोच कुछ दिनसे उसके मनमें जरूर है। अाज सइसा गोरा बिना कारण भ्रमण करने चला है यह सुनकर उसका वह शोच और भी बढ़ गया । गोरा ने पीठ पर पोटली बाँधकर ज्यों ही सड़क पर पैर रक्खा त्याही हाथमें गुलाबके फूल लिये विनय उसके सामने आ खड़ा हुआ । गोराने कहा- विनय तुम्हारे दर्शन से यात्रा शुभ होगी या अशुभ ?--इस दफे इसकी परीक्षा होगी। बिनय-कहीं जाते हो क्या ? गोरा हाँ। विनय-कहाँ? गोरा-देखो, प्रतिध्वनि ने उत्तर दिया 'कहाँ ।' विनय, तुम माँ के पास जाओ, उसके मुंहसे सब सुन लेना। मैं जाता हूँ, -यह कहकर गोरा तेजी से चल पड़ा। विनयने भीतर जा आनन्दमयी को प्रणाम कर उनके पैरो पर गुलाब के फूल रख दिये। आनन्दमयी ने फूल उठाकर पूछा-ये तुमने कहाँ पाये।