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गोरा

१६४ ] गोरा विनयने उसका टीक देउत्तर न कर कहा-उत्तम वस्तु मिलते ही जी चाहता है कि पहले इसके द्वारा माँ की पूजा करूँ इसके बाद विनयने आनन्दमया की चौकी पर बैठकर कहा-माँ बाज क्या तुम्हारा चित्त ठिकाने नहीं है ? आनन्दमयी-नुमको कैसे मालून हुश्रा ? विनय-आज तुम मुझे पान देना भूल गई हो! आनन्दमयी ने लज्जित हो पान लाकर विनयको दिया। इसके बाद दोपहर में दोनों में वार्तालाप हुश्रा । गोरा के इस प्रकार निरुद्देश होकर घूमने का अभिप्राय क्या है, इस सम्बन्ध में विनयको कोई पक्री खवर न दे सका.! अानन्दमयी ने इधर-उधर की बात करते-करते पूछा - क्या तुम कल गोरा को लेकर परेश बाबू के घर गये थे ? विनयने कल की सारी घटना विस्तारपूर्वक कह सुनाई । अब आनन्द- मयी ने प्रत्येक बात बड़े ध्यान से तुनी ? सोते समय विनय ने कहा – माँ, पूजा तो विधिवत् हुई। अब तुम्हारे. चरगों की प्रसादीका फूल सिर पर धारण करने को मिल सकेगा ? अानन्दमयी ने हंस कर गुलाब के फूल विनय के हाथ में दिये और मन में सोचा कि ये दोनों फूल जो केवल खूबसूरती ही के कारण अादर पाते हों सो नहीं । जरूर इसके भीतर और कोई गम्भीर तत्त्व छिया है। दिन के पिछले पहर विनय के चले जाने पर वह न जाने कहाँ-कहाँ की बातें सोचने लगी । भगवान् को पुकार कर बराबर प्रार्थना करने लगी कि गोराको किसी तरह का कष्ट न हो और बिनयसे उसके अलग होने का काई कारण संघटित न हो।