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गोरा

१६६ 7 गोरा इस बात का कोई जबाब न देकर ललिता जरा मुँह टेढ़ा करके हँसने लगी। वह कुछ देर पीछे वोली-आपके मित्रगौर मोहन बाबू शावद यह समझत है कि मैजिस्ट्रेटका निमन्त्रण अस्वीकार करने हीमें बड़ी बहादुरी है-~-मानों इसीमें वे अँगरेजोंके साथ लड़ाई कर दिलके फफोले फोड़ते हैं । विनयने उत्तेजित होकर कहा मेरा मित्र तो शायद ऐसा नहीं सम- झता पर मैं समझता हूँ । जो हमें आदमी नहीं समझते, और यदि समझते भी हैं तो बहुत तुच्छ; जो इशारे पर हमें बन्दरकी तरह नचाना चाहते हैं; जो हमें उपेक्षाकी दृष्टिसे देखते हैं उनके लिए यदि उस उपेक्षाके बदले उपेक्षा न की जाय तो हम लोग अपने सम्मानको रक्षा कैसे कर सकेंगे? ललितामें त्वाभिमानकी मात्रा काफी थी। इसलिये वह विनयने मुँहसे आत्म गौरबकी बात सुनकर मन ही मन खुश हुई। परन्तु इससे वह अपने पक्षको दुर्वल न समझ करके अकारण व्यंगकी बातोसे विनयके मनको दुखाने लगी। आखिर विनयने कहा-आप इसके लिए बहस क्यों कर रही है ? श्राप स्पष्ट क्यों नहीं कहता कि मेरी इच्छा है। तुम अभिनबमें साथ दो। तब मैं आपके अनुराधसे अपने मनको त्यागकर जी को कुछ सुखी करूँ । ललिता-वाह ! यह मैं क्या कहूँ ? यदि आप अपने मतको किसी तरह पुष्ट कर सके तो आप उसे मेरे अनुराधले क्यों छोड़ेगे ? किन्तु वह मत सत्य होना चाहिये। विनय-अच्छा यही सही । न मैं अपने मतको सत्य ही कर सका, और न अापके अनुरोध को ही कोई बात रही। मैं आपके अनुरोधका पालन करके ही अभिनयमें योग देनेको राजी हूँ। इस समय वरदासुन्दरीको वहाँ आते देख बिनयने झट उठकर कहा- बतलाइए, अभिनयमें सम्मिलित होने के लिए मुझे क्या करना होगा ? वरदासुन्दरीने गवके साथ कहा-उसके लिये आपको कुछ भी चिन्ता न करना होगी, मैं आपको तैयार कर लूँगी। सिर्फ अभ्यास के लिए अापको नित्य नियमित समय पर पाना होगा।