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गोरा

गोरा विनय-अच्छा तो आज जाता हूं। वरदासुन्दरी-आज क्या कहते हो ? कुछ खाकर जाना । विनय-आज नहीं । वरदानुन्दरी - नहीं नहों, यह न होगा। विनयने - भोजन किया । किन्तु और दिनकी मांति आज उसके मुंह पर वाभाविक प्रसन्नता न थी। आज सुचरिता भी कुछ चिन्तित हो एक ओर चुपचाप बैठी थी। ललिताके साथ विनयकी वहस हो रही थी तब.वह बरामदे में टहल रही थी। अाजकी रातमें बातें खूब न जमीं । जाते उमय विनयने लालताके उदासीन मुँहकी ओर देखकर कहा- मैंने हार मानी तो भी आपको प्रसन्न न कर सका। ललिता कुछ उत्तर दिये बिना ही चली गई। ललिता सहज ही रोना नहीं जानती थीं, किन्तु आज उसकी आँखों से आँसू निकलना चाहते हैं। क्या हुआ है ? आज वह अपनी बात पार श्राप ही सिर पीट-पीट कर रोना चाहती है ! वह बार-बार इस प्रकार निरपराधी विनय बाबू को क्यों चुटीली बातें कहती है और श्राप कष्ट पाती है विनय जब तक अभिनयमें सम्मिलित होनेको राजी न था तब तक ललिताकी जिद भी आसमान पर चढ़ी जाती थी, किन्तु जब उसने बी- कार कर लिया तब ललिताका सब उत्साह मिट्टीमें मिल गया। शामिल न होने के लिए जितनी युक्तियाँ थीं सब उसके मनमें प्रवल ही उठी। तव उसका मन व्यथित होकर कहने लगा, केवल मेरा अनुरोध रखने के लिए विनय बानूका इस प्रकार राजी हो जाना उचित नहीं। अनुरोध ! अनुरोध क्यों मानेंगे ? बे समझते हैं कि अनुरोध रखकर वे मेरे साथ भद्रता कर रहे है !-श्रोह ! उनकी यह भद्रता पाने के लियेमानो मेरा सिर दुख रहा है । किन्तु अनी इस तरह के स्पर्धा करनेसे कैसे बनेगा । नियँसंदेह वह विनयको अभिनयके दलमें खींचने के लिए इतने दिनोंने आग्रह दिखाती आई है। आज विनयने सुशीलताको जगह दे उसका इतना बड़ा अनुरोध