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गोरा

, गोरा [ १७१ पहले उसके मन में आया कि ये दोनो फूल अपने घरमें रख आवे, पीछे उसने सोचा-नहीं; ये शान्तिसूचक माँके पैरों पर चढ़ाकर उन्हे पवित्र कर लेना चाहिए। उस दिन सांझको बिनय जब परेश वाबूके घर गया तव सतीश ललिताके पास बैठकर स्कूलका पाठ याद कर रहा था विनय ने ललिता से कहा-युद्ध का रङ्ग लाल होता है, इस लिए सन्धिका फूल सफेद होना चाहिए था 1 ललिता इस वातका अर्थ न समझ विनयके मुंहकी ओर देखने लगी। तब विनयसे अपनी चादरके खू टसे उजले कनेरके फूलों का एक गुच्छा निकाल कर ललिताके सामने रखा और कहा--अापके दोनों फूल चाहे जितने सुन्दर हो तो भी उनमें कुछ कुछ क्रोधका रंग है; मेरे वे फूल शोभा में उनका मुकाबिला नहीं कर सकते किन्तु शान्तिके स्वच्छ रूपमें नम्रता स्वीकार कर आपके पास हाजिर हुए हैं । ललिताके कपोलों पर गुलावी अामा दौड़ गई। उसने कहा- आप किसको मेरे फूल कहते हैं ? विनयने कुछ ठिटककर कहा---तब मेरी भूल है, मुझे धोखा हुआ ! सतीश बाबू, तुमने किसके फूल किसको दे दिये ? सतीश जोरसे बोल उठा-वाह ! ललिता बहन ने देने को कहा था ? विनय-किसे देने को कहा था ? सतीश-आपको। ललिताने खिसियाकर सतीशकी पीठ में एक थप्पड़ जड़कर कहा- तुझसा बेवकूफ तो मैंने देखा नहीं . विनय वाबू के दिये हुए चित्रों के बदले तू ही न फूल देना चाहता था ? सतीश हत बुद्धि होकर बोला--हाँ,उसीके बदलेमें तो दे आया था! किन्तु. तुम्हीने मुझसे फूल देनेको कहा था न ? सतीश के साथ झगड़नेमें ललिता और भी पकड़ी गई। विनयने स्पष्ट समझ लिया, फूल ललिता ने ही दिये डे। किन्तु उसका अभिप्राय