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गोरा

१७४ ] गोरा -सहसा किसीके पैरोंकी आहट सुन भुचरिताने चौंककर पीछे फिरकर देखा, हारान पाबू, आ रहे हैं । हारान वावू ने कुरसी पर बैठकर कहा-विनय बाबू, आपके गौर वाबू नहीं पाये ? बिनयने हारान वाबूके ऐसे अनावश्यक प्रश्नसे रुष्ट होकर कहा- कयों ? उनसे कोई काम है ? बिनयके मन में बड़ा क्रोध हुआ । परन्तु अपने क्रोधको दवा कर महा-वे कलकत्ते में नहीं हैं ? हारान-तो क्या धर्म प्रचार करने गये हैं ? विनयका क्रांध और भी बढ़ गया । उसने कुछ उत्तर न दिया । सुचरिता मी चुपचाप वहां से उठकर चली गई। हारान वावृ झट उसके पीछे-पीछे गये, किन्तु वह बढ़ गई। जब वह उसे न पा सके तत्र दूरसे पुकारकर कहा-सुचरिता; टहरो, तुमसे कुछ कहना है "श्राज मेरी तवियत टीक नहीं है"--यह कहते हुए सुचरिताने शयनागारमें जाकर भीतरसे किवाड़ लगा दिये। इसी समय ललिता उसके कमरेमें आई । सुचरिताने उसके, मुंहकी ओर देखकर कहा-बतला, तुझे क्या हुआ है ! ललिताने सिर हिला- कर कहा कुछ भी तो नहीं। सुचरिताने पूछा-तू कहाँ भी ? ललिता-बिनय बाबू आये हैं, शायद वे तुमसे कुछ कहना चाहते हैं। बिनयके साथ और कोई आया है कि नहीं, यह प्रश्न अाज सुचरिता नहीं कर सकी। गदि और कोई अाया होता तो ललिता जख्र ही उसका नाम लेती । किन्तु तो भी उसके मनका संशय दूर न हुआ। अब वह अपने को दबाने की चेष्टा न करके घर आये हुए अतिथिके प्रति कत्त व्य पालने के अभिप्रायसे बाहरके कमरे की ओर चल पड़ी ! ललिताने पूछा- तू नहीं चलेगी?