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गोरा [ १७६ परेश बाबूने कहा-समदृष्टिसे देखना ज्ञानकी बात है, हृदयकी बात नहीं । समदृष्ठिके भीतर प्रेम भी नहीं है, घृणा भी नहीं है। समदृष्टि राग और द्वेषसे परे है । मनुष्यका हृदय ऐसा हृदय-धर्म विहीन जगह पर स्थिर हो कर खड़ा नहीं रह सकता। इसी कारण हमारे देश में इस तरहका साम्य तत्व रहने पर भी नीच जातियोको देवमन्दिर तकमें घुसने नहीं दिया जाता । यदि देवताके स्थानमें भी हमारे देश में साम्य न रहे, तो दर्शन-शास्त्र के भीतर उस तत्वके रहने से भी कोई लाम नहीं, और न रहनेसे भी कुछ हानि नहीं । सुचरिता बहुत देर तक चुपचाप बैठे रह कर परेश बाबूकी वातोंको मन ही मन समझनेकी चेष्टा करने लगी । अन्त में बोली- अच्छा बाबूजी आप विनय बाबू वगैरहको ये सब बातों समझाने की चेष्टा क्यों नहीं करते? परेश बाबूने जरा हँसकर कहा--विनय बाबू वगैरह बुद्धि कम होनेके कारण इन सब बातोंको न समझते हों यह बात नहीं है बल्कि उनमें बुद्धि अधिक होने हीके कारण वे समझना ही नहीं चाहते, केवल औरको समझाना ही चाहते हैं । वे लोग जब धर्मकी ओरसे अर्थात् सबकी अपेक्षा बड़े सत्यकी अोरसे इन सब बातोंको हृदयसे समझना चाहेंगे, तव तुम्हारे बाबू जी को समझाने के लिये उन्हें अपेक्षा किये बैठे रहना नहीं पड़ेगा । इस समय वे और ही पहलूसे देखते हैं ; इस समय मेरी बातें या मेरा समझाना उनके किसी काम न आवेगा। गोरा वगैरहकी बातोंको यद्यपि सुचरिता श्रद्धाके साथ सुनती थी, तो भी वे बातें उसके संस्कार या धारणा के साथ विवाद उपस्थित करके उसके हृदयको वेदना दे रही थीं। वह शांति नहीं पाती थी। आज परेश बाबूके साथ बातें करके उसने क्षण भरके लिए उस विरोधसे छुटकारा पाया। गोरा विनय, या और कोई भी परेश बाबूसे बढ़कर किसी विषयको अच्छी तरह समझता है, इस बात को सुचरिता किसी तरह अपने मनमें स्थान देना नहीं चाहती। परेश वाबूके साथ जिसका मन