पृष्ठ:गोरा.pdf/१८

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। [३] गोरा और विनय दोनों छत से नीचे उतर ही रहे थे, इसी समय गोरा की मां ऊपर आकर उपस्थित हुई । विनय ने पैर छू कर प्रणाम किया। गोरा की मां का नाम आनन्दमयी था । वह इकहरे बदन की थी लेकिन हाथ-पैर गठे हुए थे । बाल कुछ पक गये थे, लेकिन अधिकांश बाल काले होने के कारण बाहर से देख नहीं पड़ते थे ! एकाएक उन्हें देखने से जान पड़ता था, उनकी अवस्था चालीस साल से भी कम होगी। नुख मंडल अत्यन्त सुकुमार था । नाक, श्रोट, ठोड़ी और मस्तक प्रादि देखने में भले मालूम होते थे। चेहरे में एक सफाई और सतेज बुद्धि का भाव प्रतीत होता था। रङ्ग साँवला था---गोरा के रङ्ग के साथ कुछ भी मेल नहीं खाता था ! उनको देखते ही एक चीज पर सबकी नजर पड़ती थी वह साड़ी के साथ ही शेमीज पहने रहती थी। अब तो स्त्रियों में शेमीज पहनने का रिवाज हो गया है, लेकिन हम जिस समय का जिक्र कर रहे है, उन दिनों यद्यपि नये सभ्य समाज औरतों ने कुर्ता या शेमीज पहनना शुरू कर दिया था, लेकिन साधारणतः स्त्री-समाज में कुर्ता या शेमीज पहनना घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। प्रवीणा प्रौदा गृहणी इसको बिल्कुल ही कृन्तानी पहनावा कहा करती थीं। श्रानन्दमयी के त्वामी कृष्ण ड्याल बाबू कमसरियट में नौकर थे । आनन्दमयी विवाह के बाद से ही उनके साथ पश्चिमोत्तर प्रदेश में रही थीं । इसीलिए इस संस्कार या धारणा ने उनके मन में स्थान नहीं पाया कि अच्छी तरह अङ्ग ढंकने वाले कपड़ों का पहनाव लज्जा या हँसी की बात है। सवेरे उठकर वह घर बुहारती-~~-साफ करती और रसोई करती थीं । फिर सीना-परोना गृहस्थी के और काम धन्धे करना, उनका नित्य कर्म था। उसके बाद अपने