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गोरा

२८२ ] गोरा हुई, ओर उसी विनयकी दक्षताने उसके मनमें एक असन्तोष भी पैदाकर दिया । उसे यह ख्याल चोट पहुँचाने लगा कि विनय किसी बातमें उनमेंसे किसीकी अपेक्षा कम नहीं है बल्कि उन सबसे अच्छा है; वह मन-ही-मन श्रेष्टता का अनुभव करेगा, और उन लोगोंके निकटसे किसी प्रकारकी शिक्षाकी प्रत्याशा नहीं करेगा । वह अापही यह नहीं समझ पाती थी कि विनयके सम्बन्ध में वह क्या चाहती है, कैसा होने पर उसका मन खूब सहज अवस्था को प्राप्त हो सकता है। वीचमें उसकी अपनन्नता केवल छोटी-छोटी बातों में तीव्रभावसे प्रकट होकर घूम-फिर कर विनयको अपना लक्ष्य बनाने लगी! ललिता आप ही समझती थी कि उसका यह व्यवहार विनयके प्रति मुविचार नहीं है, और शिष्टता भी नहीं है । यह समझकर उसने कष्ट पाया,और अपनी इस प्रवृत्तिके दमन की चेष्टा भी की; किन्तु अकस्मात् अत्यन्त साधारण उपलक्ष में ही क्यों उसकी एक असंगत अंताला संयमके शासन को पारकर बाहर हो पड़ती थी, यह उसकी समझ न आता था । पहले जिस काममें शामिल होने के लिए उसने वरावर विनय को उत्तेजित किया उसी काम में विनयको न शामिल होने देने के लिएही अब उसके मनने उसे वेचैन कर दिया। किन्तु अव मारी तैयारी को उलट पुलट कर बिना किसी कारणके विनय उस कामसे भाग खड़ा हो तो कैमे, क्या कह कर ? समय भी अब और अधिक नहीं है । फिर अपनी एक नई निपुणता का आविष्कार करके विनय आप ही इस कार्य में उत्साहित हो उठा था । अन्त में ललिताने अपनी माँसे कहा-मैं इस अभिनयमें न शामिल हाऊँगी। वरदासुन्दरी अपनी मँझली लड़कीको अच्छी तरह पहचानती थी। इससे बहुत ही शकित होकर उन्होंने पूछा-क्यों ! ललिता--नुझसे हो नहीं सकता । असल में जब से विनयको अनाड़ी समझनेका उपाय नहीं रहा, तभी से ललिता विनयके सामने किसी तरह कविताकी आवृत्ति अभिनयका 7