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गोरा

गोरा [ १८३ अभ्यास करना नहीं चाहती थी। वह कहती थी. मैं अपने अलग ही अभ्यास करूँगी। इससे सबके अभ्यासमें वाधा पड़ती थी किन्तु ललिता को किसी तरह राजी नहीं किया जा सका । अन्तको हार मानकर रिहर्सल में ललिताके बिना ही काम चलाना पड़ा। किन्तु जब कुछ दिन वाकी रहने पर ललिताने एक दम अलग हो जाना चाहा तब वरदासुन्दरीके सिरपर जैसे ब्रजपात हो गया। वह जानती थी कि वह ललिता की इस 'नाही का प्रतिकार नहीं कर सकतीं । तव वह परेश बावूकी शरणमें गई । परेश बाबू साधारण तामें कमी अपनी लड़कियोंकी इच्छा-अनिच्छा में हस्तक्षेप नहीं करते थे। किन्तु हेटसे वे लोग वादा कर चुके हैं उसीके अनुसार उधर भी तैयारी हो है; इधर समय भी बहुत ही थोड़ा है, यह सब तोच विचार कर परेश बाबूने ललिता को बुलाया । उसके सिर पर हाथ रखकर उन्होंने कहा -ललिते अब तुम इससे अलग हो जाओगी तो अन्याय होगा। ललिता ने रोदन रुद्ध कंठ से कहा- बाबू जी, मुझसे यह नहीं हो सकता । मैं अभिनयमें अपना काम अच्छी तरह न कर पाऊँगी । परेशने कहा—तुम अच्छी तरह न कर पात्रोंगी तो उसमें तुम्हारा कुछ दोष न होगा; किन्तु न करनेसे अन्याय होगा। ललिता सर झुकाये खड़ी रही ! परेश वाढूने कहा—बेटी जब तुमने इस कामका भार अपने ऊपर लिया है, तब तुम्हें यह काम पूरा करना ही होगा ! पीछे अहंकार को चोट पहुंचेगी, यह ख्याल करके भाग खड़े होने का तो अब समय नहीं है । पहुंचने दो अहंकार को चोट उसे अग्राह्य करके मी तुमको अपना कर्तव्य करना ही होगा। यह तुमसे हो न सकेगा क्या बेटी? ललिताने पिताके मुख की ओर देखकर कहा-हो सकेगा! उसी दिन शामको खास करके विनयके सामने ही सब संकोचको पूर्ण रूपसे दूर करके ललिता, जैसे एक अतिरिक्त बलके साथ, स्पर्धा- पूर्वक अपने कर्चव्यमें प्रवृत्त हुई । विनयने इतने दिन तक उसकी कविता