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गोरा

गोरा पाठ नहीं सुना । आज सुनकर सब अचम्भे में डूब गया। ऐसा सुस्पष्ट सतेज उच्चारण कि कहीं पर कुछ भी अस्पष्टता या रुकावट नहीं ! भाव प्रकट करने के भीतर ऐसा एक निःसंशय वल था कि सुनकर विनयको श्राशातीत आनन्द प्राप्त हुआ। वह कण्ठ स्वर विनयके कानोंमें बहुत देर तक गूंजता-सा रहा। ऋविताका पढ़ना, अच्छे पढ़नेवालेके सम्बन्ध में श्रोता के मनमें, एक विशेष प्रकार का मोह उत्पन्न करता है । फूल जैसे वृक्षकी शाखा में वैसेही कविता मी पढ़ने वाले ही के बीच, लिखकर उसे विशेष शोभा सम्पत्ति देती है। ललिता भी विनयकी दृष्टि में कवितासे मण्डित हो उठी। ललिताने इतने दिन तक अपनी तीघ्रताके द्वारा बिनयको निरन्तर उत्तेजित ही कर रखा था। जहाँ पर व्यथा है केवल उसी जगह जैसे हाथ पड़ता है, वैसेही बिनय भी इधर कई दिन ललिताके उष्ण वचन और तीक्ष्ण हात्यके सिवा और कुछ सोचही नहीं सका था। उसे बारम्बार यही अलो- चना करनी पड़ती थी कि ललिताने क्यों ऐसा किया क्यों ऐसी बात कही । ललिताके असंतोष के रहस्य को जितना ही वह खोल नहीं सका उतना ही ललिता की चिन्ताने उसके मन पर अधिकार जमावा । एकाएक सबेरेके समय नींद से जागकर वहीं ख्याल उसके मनमें आया; परेश बाबू के घर अनेक समय नित्य ही उसके मनमें यह तर्कणा उपस्थित हुई कि आज ललिता कैसे भावमें देखी जायगी । जिस दिन ललिताने लेशभर भी प्रसन्नता प्रकटकी है उस दिन विनयके जैसे जानमें जान आई, और यही सोचता रहा है कि क्या करने के उसका यह भाव सदा बना रह सकता है। किन्तु आजतक ऐसा कोई उपाय उसे ढूढ़े नहीं मिला कि जो उसके. हाथमें हो। इन कई दिनोंके इस मानसिक हलचल के बाद ललिताके कविता पाठ के माधुर्यने विनयको विवेष करके प्रबल मावसे विचलित किया । उसे वह इतना भला लगा कि उसे प्रशंसाके लिये शब्द ढूंड़ना कठिन हो गया । ललिता के मुँह पर भला या बुरा कुछ भी कहनेका उसे साहस