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गोरा

गोरा १८] भाव था, वही भाव इस समय अत्यन्त स्पष्ट हो उठा है। उसने जो अमि- नय कार्यके अभ्यासमें योग दिया था, उसके भीतर भी उसकी स्वतंत्रता नष्ट नहीं हुई। कामके लिए उसकी जितनी जरूरत होती थी, उसे ही करके वह चली जाती थी। इसी तरह देखते देखते सुचरिता विनयके निकटसे बहुत दूर चली गई। अषको कई दिन गोराके उपस्थित रहनेसे विनय बिल्कुल ही वे रोकटोक हो परेश बावूके परिवारके साथ सभी तरहसे हिलमिल गया था, विनय इस तरह अवारित भावसे प्रकाशको प्राप्त हुआ तो यह देख कर बाबू के घरके समी आदिमयोंने एक विशेष तृप्तिका अनुभव किया। विनयने मी अपने इस तरह वाधामुक्त स्वाभाविक अवस्था से जैसा अानन्द पाया वैसा वानन्द उसे और कभी मिला न था ! वह उन सब लोगोंकों भला लगता है, यह अनुभव करके उसकी रिमानेकी शक्ति और भी बढ़ उठी। प्रकृतिके इस फैलावके समय, अपनेको स्वतंत्र शक्तिसे असुभव करनेके दिन, विनयके निकटसे सुचरिता दूर चली गई । यह क्षति, यह आघात, अन्य समय दुःसह होता; किन्तु इस समय वह सहज ही उससे उत्तीर्ण हो गया । आश्चर्य तो यही है कि ललिताने भी सुचरिताके भावान्तरको उपलक्ष करके उसके प्रति पहलेकी तरह अभिमान नहीं प्रकट किया। कविताकी आवृत्ति और अभिनयके उत्साहने ही क्या उस पर संपूर्ण अधिकार कर लिया था ? इघर सुचरिताको अभिनयमें शामिल होते देखकर एकाएक हारान बाबू भी उत्साहित हो उठे। उन्होंने यह कह कर स्वयं प्रस्ताव किया कि वह 'पैराडाइस लाल्ट का एक अंश पढ़ेगे, और ड्राइडनके काव्यका जो पाठ अभिनयमें होगा, उसकी भूमिकाके तौर पर संगीतकी मोहिनी शक्ति के सम्बन्धमें एक छोटी सी वक्तृता भी देंगे। इस प्रस्तावको सुन कर वरदासुन्दरी मनमें खींज उठी । ललिता भी सन्तुष्ट नहीं हुई। हारान बाबू खुद मैजिस्ट्रट से मुलाकात करके इस प्रस्तावको पहलेही पक्का कर