पृष्ठ:गोरा.pdf/१९२

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[ २५ ] रविवारको सबेरे आनन्दमयी पान लगा रही थी; शशिमुखी उनके पास बैठी सुपारी काटकर ढेर कर रही थी। इसी समय विनय वहाँ पहुंचा । विनयको देखते ही शशिमुखी अपने अांचलसे की सुपारियाँ फेंककर चटपट भाग खड़ी हुई । आनन्दमयी जरा मुसकरा दी। विनय सभीके साथ हेलमेल कर लेता था। अब तक शशिमुखीके साथ उसका खूब हेलमेल था। दोनों ही ओरसे परस्पर खूब उपद्रव चलता था । शशिनुस्खीने विनयसे कहानी कहलानेका यह उपाय खोज निकाला था वह कि उसके जूते छिपाकर रख देती थी। विनयने भी शशिमुखीके जीवनकी दो एक साधारण घटनाओं के आधार पर खूब रंग चुन कर दो-एक कहानियाँ गढ़ रखी थीं। उन्हींमें से कोई कहानी शुरू करने पर शशिमुखी बहुत ही खीजती थी । पहले वह वक्ताके ऊपर मिथ्या भाषण का अपवाद लगाकर उच्च स्वरसे प्रतिवादकी चेष्टा करती । उस पर भी जब विनय चुप न होता, तो वह हार मानकर वह स्थान छोड़कर भाग जाती थी। शशिमुखी भी विनयके जीवन चरितको विकृत करके उन कहानियों के जवाबमें वैसी ही कहानी बनानेकी चेष्टा करती थी; किन्तु रचना तथा कल्पनाकी शक्तिमें विनयके सामने न ठहर सकनेके कारण बह इस सम्बन्ध में यथेष्ट सफलता नहीं प्रात कर सकी। मतलब यह कि विनय जब गोराके घर आता था, तब सब काम छोड़कर शशिमुखी उसके साथ ऊधम और छेड़छाड़ करने के लिए दौड़ी अाती थी। किसी किसी दिन वह इतना उत्पात करती थी कि अानन्दमयी उसे डाँटने लगती थीं । किन्तु दोष तो अकेले उसी बेचारी का नहीं था, विनय भी उसे उत्तेजित कर देता था कि अपनेको संभालना उसके लिए असम्भव हो जाता था। वहीं शशिमुखी आज जब विनय को देखकर चट- १६२