पृष्ठ:गोरा.pdf/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ १९३
गोरा

गोरा पट वह स्थानको छोड़कर भाग खड़ी हुई, तब आनन्दमयी हँसी । किन्तु वह हँसी सुखकी हँसी नहीं। विनय को भी इस क्षुद्र घटनाने ऐसी चोट पहुंचाई कि वह कुछ देर तक चुपचाप बैठा रहा। शशिमुखीसे व्याह करना विनयके लिये कितना असंगत है यह ऐसे ही ऐसी छोटी मोटी बातोंमें अच्छी तरह स्पष्ट हो उठता था। विनयने जब इस ब्याह के लिये अपनी सम्मति दी थी तो उस ने गोराके साथ मित्रताकी बात ही सिर्फ सोची थी—कल्पनाके द्वारा उसकी इन अड़चनोंका अनुभव नहीं किया था। इसके सिवा, हमारे देश में विवाह प्रधानतः व्यक्तिगत मामला नहीं है, वह पारिवारिक है। इसी सिद्धान्त को लेकर विनय पत्रों में अनेक लेख लिख चुका है, और उनमें इस बातको भारतवासियों के लिये गौरव की सामग्री सिद्ध कर चुका है। यही कारण है कि अपने विवाह सम्बन्धके बारे में आप भी उसने किसी व्यक्तिगत इच्छा को मनमें स्थान नहीं दिया । अाज शशिमुखी जो विनयको देखकर अपना वर समझकर लज्जाके मारे उसके आगेमे भाग खड़ी हुई उससे उसको शशिमुखीके साथ अपने भावी सम्बन्ध का रूप दिखाई पड़ा। यह सोचकर गोरा उसे उसकी प्रगति के विरुद्ध कहाँ तक लिये जा रहा था विनय को गोराके ऊपर बड़ा क्रोध हुअा। अपने ऊपर विकारका भाव उत्पन्न हुआ, और यह स्मरण करके कि आनन्दमवीने पहले ही इस विवाहको नापसन्द किया था उनकी सूक्ष्म दर्शिता के लिये विनय का मन उनके प्रति विस्मय मिश्रित मक्तिसे परिपूर्ण हो उठा। अनन्दमयी विनयके मनका भाव समझ गई। उन्होंने उसके मनको दूसरी ओर फेरनेके लिये कहा-कल गोराकी चिट्ठी आई है विनय । विनयने कुछ अन्यमनस्क भावसे ही कहा-क्या लिखा है ? आनन्दमयीने कहा --अपना हाल कुछ विशेष नहीं लिखा है। देशके छोटे लोगों की दुर्दशा देख कर दुःखित होकर उन्हींको हाल अधिक- तर लिखा है । घोषपाड़ा नामके किसी गाँवमें मजिस्ट्रेट कैसे-कैसे अन्याय- अत्याचार कर रहा है, उसीका वर्णन किया है। १० नं. १३