पृष्ठ:गोरा.pdf/१९६

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1 [२६] गोरा जब बाहर घूमनेको निकला था तब उसके साथ अविनाश, मोतीलाल, बसन्त, और रमापति भी थे। किन्तु गोराके पूर्ण उत्साहमें ये लोग पूरा साथ न दे सके । अविनाश और बसन्त तबीयत खराब हो जानेका बहाना करके चार ही पाँच दिनके भीतर कलकत्ते लौट आये। मोतीलाल और रमापतिको गोराके ऊपर बड़ी भक्ति थी, इसलिए ये दोनों उसे अकेला छोड़कर न लौट सके । किन्तु इन दोनोंके कष्टोंकी सीमा न रही। कारण यह था कि गोरा बहुत चलकर भी न थकता था। और कहीं तकलीफ पाकर भी वह दो चार दिन ठहर जाता था। गांवका जो कोई गृहस्थ गोराको ब्राह्मण समझकर भक्तिपूर्वक अपने घरमें ठहराता था, वहाँ अनेक अनुविधाएं रहते भी वह अटक जाता था। उसकी बात- चीत सुनने के लिये सारी वस्तीके लोग चारों ओरते श्राकर इकट्ठे होते थे और दिन रात उसे घेरे रहते थे। वे उसको छोड़ना नहीं चाहते थे। गोराने यहाँ पहले-पहल यह देखा। भारतवर्ष असंख्य गाँवोंका अाधार-भूत होकर भी कितना भेद-भाव युक्त, संकीर्ण और दुर्वल है, वह अपने शक्तिके सम्बन्ध में जैसा अचेत और नंगल साधनमें नितान्त अज्ञ और उदासीन है ! पाँच ही सात कोस के अन्तर पर उसका कैसा सामाजिक प्रभेद है; परस्पर कैसा जुदाईका भूत सवार है । यह सब ग्रामवासियोके बीच इस तरह निवास न करनेसे गोरा कभी न जान सकता । गोरा जब गाँवमें टिका था तय दैवयोगसे एक महल्लेमें श्रागं लगी। इतने बड़े सङ्कटमें भी सब लोगोंको मिलकर प्राणपणसे विपत्ति के विरुद्ध काम करते न देख गोराको बड़ा आश्चार्य हुआ । एक जगह घर बाँधकर दस मनुष्योंके रहने का मुख्य उद्देश्य यही है कि बिपत्ति में एक दूसरे की सहायता करें। यदि ऐसा न हुया तो गाँवमे एक २६६