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गोरा

१९८] गोरा दिया। अब गोराके साथ सिर्फ रमापति रह गया । दोनों वहाँ से विदा हो नदीके पासकी बालुकामयी भूमिमें एक मुसल- मानी बस्तीमें जा पहुंचे । ठहरने की इच्छासे ढूढ़ते ढूंढते सारी बस्तीके भीतर केवल एक घर हिन्दू हजामका मिला । दोनों ब्राह्मणोंने आश्रय लेने के लिए उसके घर जाकर देखा,बूढ़ा नाई और उसकी स्त्रीएक मुसलमानके बच्चे को अपने घर में पाल रहे हैं। रमापति बड़ा ही नैष्टिक था, वह तो व्याकुल हो गया । गोरा नाईको इस अनाचारके लिए धिक्कार देने लगा। उसने कहा-देवताजी, हम लोग जिसे हरि कहते हैं, उसीको वे अल्ला कहते हैं, मेद कुछ नहीं है। धूप कड़ी हो गई थी, जिधर देखो उधर बालू ही बालू नजर अाली थी । नदी वहाँ से बहुत दूर थी। रमापतिने मारे प्यासके आकुल होकर कहा जल कहाँ मिलेगा? नाईके घरके समीप एक कूप था, किन्तु उस कुएँ का पानी न पीकर वह मुँह बिगाड़ कर बैठा रहा। गोराने पूछा-क्या इस लड़के के माँ बाप नहीं हैं ? नाई ने कहा-दोनों हैं पर न होने ही के बराबर है। गोरा--सो कैसा? नाईने इस पर जो इतिहास कहा उसका सारांश यह है- जिस जमीदारीमें ये लोग रहते हैं, वह निलहे साहबके ठेकेकी है ! रेतीली भूमिमें नीलकी खेती करने के विषयमें प्रजाके साथ नील कोठीके विरोधका अन्त नहीं। सब किसानोंने उसकी दस्तन्दाजी कबूल कर ली है, सिर्फ अल्लापुरकी प्रजाको साहब अभी तक अपने कब्जे में नहीं ला सका है। यहाँको रियाया मुसलमान हैं और इनका सर फेरू मियाँ किसी से नहीं डरता ! निलहें साहबके उपद्रवक्री तहकीकातमें आई हुई पुलिसकों दो दफ़ पीकर जेल कार पाया है। उसकी अवस्था ऐसी बोत रही है कि उसके घरमें इत्तफाक हीसे कभी चूल्हा जलता है पर तो भी वह किसी से डरने वाला नहीं है। इस दफे नदीके समीप ही रेतीली जमीनको जोत