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गोरा

गोरा [२०३. नाई-अगर आप हम लोगोंकी रक्षा करनेकी चेष्टा करेंगे तो हम लोग और भी विपत्ति में फँसेंगे | वे साले यही समझेंगे कि मैंने ही प्रपंच करके आपको बुलाकर उनके विरुद्ध गवाह खड़ा किया है । इतने दिनसे किसी तरह यहाँ टिका तो हूँ, हाँ अब टिक भी न सकंगा । अगर मैं अकेला यहाँ से चला जाऊँ तो बह सारी बस्ती बरबाद हो जायगी। गोरा अब तक शहरमें रहकर ही शादी हुश्रा । नाई क्यों इतना डर रहा है, वह समझना उसके लिए कठिन हो गया। वह जानता था कि. न्यायके ऊपर दृढ़ भावसे पारुढ़ रहने पर अन्यायका प्रावल्य नहीं रह सकता । विपद् ग्रस्त गाँवको असहाय अवस्था में छोड़कर चले जाने में उसकी बुद्धि किसी तरह सम्मत न हुई । तत्र नाईने उसके पैर पकड़ कर कहा- देखिये आप ब्राह्मण हैं, मेरे पूर्वजन्म के पुण्य से आप मेरे अतिथि हुये हैं मैं जाने के लिए कहता हूं यह मुझसे बड़ा अपराध होता है । किन्तुं हमारे ऊपर जो आपकी दया है वह जानकर ही हमने ऐसा कहा है। श्राप मेरे घरमे रहकर यदि पुलिसके अत्याचार में कोई रोक टोक करेंगे तो समझिये आप हमें बड़ी विपतमें डालेंगे। नाईके इस भव को अमूलक और कायरता समझकर गोस कुछ रुष्ट हो कर तीसरे यहर दिन के ही उसका घर छोड़कर चलता हुआ । इस म्लच्छ के घर वाया पीया है यह सोचकर गोराके मनमें कुछ अश्रद्धा भी उत्पन्न होने लगी। थके हुए शरीर और उद्विग्न मनसे वह साँझको नील कोठी की कचहरीमें जा पहुँचा ! रमापति भोजन करके तुरन्त कलको को चज दिया ! इस कारण वह वहाँ न दीख पड़ा । मंगलप्रसाद गोराका तेज. पूर्ण मुख देखकर उसका विशेष आतिथ्य सत्कार करने लगा । गोराने एक- दम बिगड़कर कहा--मैं आपके यहाँ जल भी ग्रहण न करूंगा। मंगलप्रसादने विस्मित होकर इसका कारण पूछा ! उत्तरमें गोराने उसे अन्यायी, अत्याचारी कह कर कटु भापणका प्रयोग किया और आसन पर न बैठ खड़ा रहा । दारोगा चौकी पर बैठकर मसनद के सहारे तम्बाकू पी रहा था । वह उठ बैठा और जरा रूखे स्वर में बोला- तुम कौन हो ।