पृष्ठ:गोरा.pdf/२०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२०४ ]
गोरा

२०४. ] गोग गोरांने इसका कुछ उत्तर न देकर कहा-मालूम होता है तुम दारोगा हो? तुमने अल्लापुर में जो जो उपद्रव किये है उनकी सब खबरें लिये श्रा रहा हूँ अगर अब भी संभलकर न चलोगे तो-- दरोगा तो क्या तुम फाँसी दोगे ? तुम तो बड़े शानदार आदमी मालूम होते हो । पहले तो जान पड़ा था, तुम कुछ मांगने की इच्छासे श्राये हो, किन्तु अव तो कुछ और ही देख पड़ता है। देखते हैं, पाखें रंग गई है त्योरी चढ़ गइ है। शायद दारोगासे कभी भेट नहीं हुई है ? मङ्गलने दरोगा का हाथ पकड़कर कहा-जाने दीजिये, अपने घर आये किसी सज्जनका अपमान करना ठीक नहीं। दरोगाने बिगड़ कर कहा -कैसा सज्जन ! इसने जो मनमें आया है, श्राप से कहा है। क्या वह अापका अपमान नहीं हुआ ? मङ्गल-आपका कहना सही है किन्तु निरर्थक क्रोध करनेसे क्या होगा ? मैं निलहे साहवकी तहसीलदारी करके खाता हूँ: उसका काम करता हूं। उसके अतिरिक्त और काम से मुझे क्या वास्ता जो उसमें कुछ बोलूँ । भाई श्राप क्रोध न करें, आप पुलिस मोहकमेंके दरोगा हैं, आप को यदि यमदूत कहें तो भी अनुचित न होगा । बिना प्रयोजन मङ्गलप्रसादको किसी पर नाराज होते आज तक किसी ने नहीं देखा है। किस आदमौसे कव क्या काम चल सकता है या रुष्ट होने पर कित्तके द्वारा क्या अनिष्ट हो सकता है, यह नहीं कहा जा सकता। किसीका अनिष्ट या अपमान वह खूब सोच-विचार कर करता था क्रोध करके दूसरेको सतानेकी यातको वह सहसा नहीं किया करता था। दरोगाने तब गोरासे कहा-देखो बाबू, नुम पूरे देहाती मालूम होते हो। हम लोग यहाँ सरकारी काम करने आये है। इसमें अगर तुम कुछ होलोगे या किसी तरहकी दस्तन्दाजी करोगे तो मुश्किल में पड़ोगे । गोराने इसका कुछ उत्तर न देकर बाहर निकल आया ! मङ्गल झट उसके पीछे हो लिया और उसके पास जाकर बोला--महाशय ! आपने जो कहा है सो टीक है हम लोगोंका यह कसाईका काम है-और इस