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२०८ ]
गोरा

२०८ ] गोरा साक्षात्कारके समय हारान बाबू और गोरा, इन दोनों में पारस्परिका परिचयका कोई लक्षण न पाया गया । गोरा को देखकर साहब कुछ विस्मितसे हो गये। ऐसा लम्बा जवान, हट्टा-कट्टा वदन, इसके पहले कभी वङ्ग देश में देखा है या नहीं, यह उनके स्मरणमें न आया । इसके शरीरकी कान्ति भी साधारण बङ्गालीकी 'सी न थी। यह एक खाकी रङ्ग का कुरता पहिने हुए था, धोती मोये और कुछ मैली थी, हाथमें एक बाँस का लट्ठ था चादर को सिर-पर पगड़ीकी तरह लपेटे हुए था। गोराने मैजिस्ट्रेट से कहा-मैं अल्लापुरसे पा रहा हूँ | मैजिस्ट्रेट ने एक विस्मयसूचक्र मात्र प्रदर्शित किया। अल्लापुरकी वर्तमान कार्रवाई में एक वाहरी आदमी बाधा देने आया है, यह खबर उनको कलही मिल चुकी थी । तो क्या यह वही आदमी है? गोराको सिरसे पैर तक उन्होंने एक बार कड़ी हटिसे देखा और पूछा--तुम कौन जात हो? कहा-यो। गोरा-मैं बङ्गाली ब्राह्मण हूँ। साहबने क्या समाचार पत्रके साथ तुम्हारा कोई सम्बन्ध है? गोरा-जी नहीं। मैजिस्ट्रेट-तब तुम अल्लापुर क्या करने गये थे ? गोरा-घूमते-फिरते वहाँ जा पहुंचा था। पुलिस का अत्याचार और गाँव की दुर्दशा देखकर तथा वहाँ विशेष उपद्रवकी संभावना बानकर प्रतिकारके लिए मैं आपके पास आया हूँ। मैजिस्ट्रेट-अल्लापुरले लोग बड़े बदमाश हैं, यह तुम नहीं जानते? गोरा-वे बदमाश नहीं है, वे निडर हैं और स्वतन्त्र स्वभाव के हैं । वे लोग अन्याय और अत्याचार को चुपचाप नहीं सह सकते। मैजिस्ट्रेट खफा हो उठे। उन्होंने मनमें समझा कि नये बङ्गाली