पृष्ठ:गोरा.pdf/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ २०९
गोरा

गोरा [ २०६ इतिहासकी किताबें पढ़कर नई बोली बोलने लगे है ! "तुम वहाँको मलतसे विलकुल वाकिफ नहीं हो", यह कहकर मैजिस्ट्रेटने गोरा को खूब त्रुड़की दी। गोराने मी खूब कड़ककर कहा-~-आप वहाँकी हालत मेरी अपेक्षा महत कम जानते हैं। मैजिस्ट्रेट में तुमको सावधान किये देता है, अगर तुम अल्लारके मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप करोगे तो याद रखो, तुम विद्रोही समझे जायोगे और तुमको इसका उचित फल मिलेगा। गोरा--जब आपने अत्याचारको शान्त न करने ही का मनमें सङ्कनप किया है और गाँवसे लोगों के विरुद्ध जब आपकी ऐसी धारणा दृद्ध बध गई है तब मैं कर ही क्या सकता हूँ । हाँ, इतना मैं जरूर करूँगा कि उत आँवके लोगोंको पुलिस के विरुद्ध खड़े होने के लिये उत्साहित करेगा। मैजिस्ट्रेट चलते चलते रुक गये और पीछे की ओर धूमकर गोराको स्पट कर बोले 1- क्या इतनी बड़ी शेखी ? गोरा कुछ जवाब न देकर धीरे धीरे वहाँ ने चला गया। मैमिलेटने हारान बाबूसे ऋहा-क्यों साहब, श्रापके देशवासियोंमें यह कैसा लक्षण दिखाई दे रहा है ? हारान बाबू ने कहा- हुजूर ! लिखना पढ़ना कुछ टीक होता नहीं, स्यशेषकर देश श्राव्यात्मिक और नैतिक तथा चरित्र नुधार सम्बन्धी शिक्षा न होने के कारण ही ऐसी घटना होती है। अँगरेजी विद्या का जो मठ अंश है वह ग्रहण करने की इन्हें सामथ्र्य नहीं । भारतवर्ष में अँगरेजी शासन को-जो ईश्वरको कृपा का फल है-ये अकृता अब भी स्वीकार करना नहीं चाहते। इसका करण एक मात्र यही जान पड़ता है कि ये लोग तोते की तरह केवल पाठ को कंट कर लेते हैं किन्तु धर्म का चान बिलकुल नहीं है। मैजिस्ट्रेट ट-जब तक ये लोग ईसाईमतको न मानेंगे तब तक भारत में वह धर्मज्ञान कभी पूर्णतया लाभ न करेगा। ॐ०१४