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गोरा

। २१६ ] गोरा विनय अनेक अनुनय विनय करके हार गया, लेकिन गोराने उसपर ध्यान ही नहीं दिया । उसने विनयसे पूछा-~-तुम यहां कैसे आग ये विनयका मुख कुछ लाल हो उठा । गोरा अगर अाज हवालातमें न होता; तो शायद विनय कुछ विद्रोहके स्वर में ही अपनी यहाँ उपस्थित का कारण कह देता। किन्तु आज गोराक प्रश्नका उत्तर उसके मुँहते न निकल सका । बिपने कहा-मेरी बात पीछे होगी. इस समय तुम्हारी । गोर का तो राजाका अतिथि हूँ ! मेरे लिए नामाको छुद्ध चिन्ता , दुन लागान किसीको कुछ सोचना न होगा : विनय जानता था, गोराको उसके संकल्पसे डिगाना सम्भव नहीं । अतएव वकील, करनेका चेच्य छोड़ देनी पड़ी। विनयने कहा-मैं जानता हू, तुन तो यहाँ कुछ खा पी नहीं सकोगे। वाहर से कुछ खाने के लिए भजनका प्रबन्ध कर दूँ? गोराने अधार हाकर कहा--विनय, क्यों तुम वृथा चेष्टा करते हो । बाहरसे मैं कुछ नहीं चाहता । हवालात में सबको जो नसीब होता है, उसस अधिक कुछ भी मैं नहीं चाहता। विनय व्यक्ति चित्तसे डाक बङ्गलेमें लौट आया। रास्ते की ओर को एक सोनेकी कोठरी थी, उसीमें दरवाजा वन्द किये और खिड़की खोले वैये हुई सुचरिता विनयके लौटने की राह देख रही थी । वह किसी तरह और सबका संग और रावचीत सहन करने में असमर्थ हो रही थी। सुचरिताने जब देखा कि विनय चिन्तित उदासमुख लिए डाक- बङ्गालेकी ओर आ रहा है, तब आशंकाक भावसे उसके हृदय में हलचल सी. मच गई। बहुत कोशिशसे अपनेको शान्त करके एक किताब हाथमें लेकर सुचरिता सबके पास आकर बैठ गई । ललिता सिलाईका काम पसन्द नहीं करती, किन्तु आज वह भी चुपचाप एक कोने में बैठी सुई चला रही थी। लावण्य सुधार के साथ खेल खेल रही थी; लीला दर्शक रूपसे बैठी थी ! हारान बाबू वरदासुन्दरीके साथ दूसरे दिन होने वाले, उत्सव की चर्चा और आलोचना कर रहे थे।