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गोरा

गोरा २१४ विनय ने आकर आज प्रात:काल पुलिसके द्वारा गोराके झगड़ेका सब हाल व्योरेवार कह मुनाया । मुचरिता सन्नाटे में आकर बैठी रही । ललिता के हाथ में सिलन्दं का काम गिर गया और चेहरा लाल हो उठा। बदामुन्दरीने कहा-श्राप कुछ चिन्ता न करिये त्रिनय बाबू ! मैं खुद मैजिन्देश नाहब की मेमसे गोरा बाबू के लिये अनुरोध करूँगी । विनयने कहा-ना, ना, बार यह न करें। गोरा अगर सुन पायेगा तो वह इस जीवन भरमें मुझे क्षमा न करेगा! नुधारने कहा -उनके डिफेन्स (बचाव के कुछ बन्दोबन्त करना होगा। जमानत देकर छुड़ाने की चेष्टा और कलोल लड़ा करने के सम्बन्ध में गोरान जो जो आपत्ति की थी सव विनयने कह सुनाया। मुन सुनकर हारान बाबू ने असहिष्णु होकर कहा- यह सब ज्यादती है। हारान बाबूके कवर ललिताके मन काभाव चाहे जो हो, वह आज तक उन्हें मानता बारहो है,उनका अदब करती रही हैं--कनी उलने उनसे वहस नहीं की। अाज यह उनकी बात सुनकर उसस नहीं रहा गया बह तात्र नाव में सिर हिलाकर कह उठी--कुछ मा ज्यादती नहीं है-बोरा बाबू जो कहते है सो ठीक है। मजिस्ट्रेट हम पर अत्याचार करेगा, और हम बार अपना रक्षा करेंगे ! उनकी लंबी तनख्वाह देने के लिए हमें टैक्स दना होगा और उन्हाक दमनक हाथ स पारत्राण पानकालय अपन बचाव लिय हम अपना हा गाँठ से वकाल की फीस ना देना होगा ! ऐसा इंसाफ पानेकी अपेक्षा जल जाना ही भला है ! ललिता को हारान बाबू ने जरा सी देखा है - उन्होंने किसी दिन इसकी कल्पना भी नहीं की कि ललिताकी काई स्वतन्त्र सम्मति है, या हा सकती है। उसी ललिताक मुखकी तीन भाषा सुनकर वह आश्चर्य से अवाक रह गये। मर्त्सना के स्वर में उन्होंने ललितासे कहा--तुम इन सब बातों के बारे में क्या समझती हो ? जो लोग कुछ थोड़ी सी किताबें स्टकर परीक्षा पास कर, अभी कालेज से निकलकर आये हैं, जिनका कोई ।