पृष्ठ:गोरा.pdf/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२४ ]
गोरा

गारा २२४ ] विनयने ललिता को फर्ट क्लास डेक में कुर्सी पर बिठा कर उपचार उसके मुँहकी अोर देग्नः । ललिताने कहा- कलकने जाऊँगी। मुझसे किसी तरह उहरा नहीं गया ! विनयने पूछा--र ये सब ? ललिताने कहा-अन तक कोई यह हाल नहीं जानता । मैं पुडा लिख कर रस्त्र प्राइ हूँ, बढ़ कर जान लेंगे। ललिताकी इस दुस्साहसिकतासे विनय स्तम्भित रह गया था। बह संकोच के साथ कहने लगा--नगर ललिताने चन्म बाधा देकर कहा-जहाज छूट चुका है, अब 'अगर-मगर में क्या होगा? औरत होकर पैदा हुई हूँ तो मुझे सब कुछ चुपचाप सहन्ना रहेगा, यह मेरी समझ में नहीं आता। हम त्रियोंकी बुद्धिमें न न्याय अन्याय, सम्भव-असम्भव, सभी कुछ है । आज के निमन्त्रर में जाकर अभिनय करने की अपेक्षा आत्महत्या कर लेना मेरे लिए सहन है : विनय सोचा. जो होना था सो हो गया; अब इस कामकी मलाई-बुराईका विचार करके ननको पीड़ित व चिन्तित करने में कोई लाम नहीं है। कुछ देर चुप रह कर जालेताने कहा-देखिए, आपके मित्र गोर बाबूके साथ मैंने मन-ही-मन बड़ा अविचार किया था । नहीं जानती, पहलेले ही श्यों नन्हें देख कर, उनकी बातें सुनकर मेरा मन उनके विरुद्ध हो गया था। वह बहुत ज्यादा जोर देकर बातें कहते थे और श्राप सब लोग उनका साथ जैसे दिये जाते थे; यही देखकर मुके एक तरहका क्रोध हो जाता था । मेरा स्वभाव ही यह है, यदि देखती हूँ कि कोई बातचीत या व्यवहार में जोर आहिर करता है, तो उसे मैं बिल्कुल ही सह नहीं सकती । किन्तु गोरा वादूका जोर सिर्फ