पृष्ठ:गोरा.pdf/२२७

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[ ३० ललिताको साथ लेकर विनय परेश बाबूके घर पर उपस्थित हुआ। न्टीमर पर चढ़ने के पहले तक विनयको निश्चित रूपसे नहीं मालूम था कि ललिताके सम्बन्धमें उसके मनका भाव क्या है। ललिताके साथ विरोध में ही उसका मन हुआ था कि किस तरह इस दुर्जय लड़कीके साथ किसी तरह मुलह की जा सकती है, यही कुछ समयसे विनयकी- चिन्ता का प्रायः प्रतिदिनका विषय हो रहा था। विनयके जीवन में स्त्री- माधुर्यकी निर्मल दीप्ति लेकर मुचरिता ही पहले सन्ध्या ताराके समान दिखाई दी थी। इस आविर्भाव का अनुपम अपरून आनन्द ही उसकी प्रकृति को परिपूर्णता दिये हुए है, यही विनय अपने मनमें बानता था । किन्तु इसी बीचमें और एक तारा उदय हो आया है, और ज्योतिः उत्सव की भूमिकामात्र करके प्रथम तारा धीरे-धीरे क्षितिजकी और उतर रहा है-यह बात विनय स्पष्ट रूपसे समझ नहीं सका था। विद्रोही ललिता जिस दिन टोनर पर चढ़ आई, उस दिन विनयके मनमें आया कि ललिता और मैं दोनों एक पक्षमें होकर जैसे सारे संसार के प्रतिकूल खड़े हुए हैं। इस घटनाके कारण ललिता और सबको छोड़ कर उसीके पास आकर खड़ी हुई है. यह बात विनय किसी तरह भूल नहीं सका । चाहे जिस कारण और चाहे जिस उपलक्षसे हो, ललिताके लये विनय आज अनेकके बीच एक जनमात्र नहीं है. ललिताकी बगल में वही अकेला है- वही एक मात्र है, सब यात्मीय-वजन दूर है, वही निकट है। इस नकट्य का पुलक पूर्ण सन्दन, बिद्युतगर्भ मेधकी तरह उसकी छातीमें एक, चमक सी पैदा करने लगा। फर्स्ट क्लास केबिन में ललिता जब सोने गई तब विनयसे अपनी जगह पर सोया नहीं गया। वह उसी केबिनके बाहर डेक पर जूते उतार कर चुपचाप टलहने लगा। स्टीमर में ललिता के सम्बन्धमें कुछ उत्पात होने की विशेष २२७