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गोरा

गोरा असलमें मुझे कुछ भी दुःख नहीं है भैया । और किसी दिन शुद्ध ब्राह्मणके हाथले रसोई बनवा कर तुम्हें खिला दूंगी। तुम क्यों खिन्न होते हो ? मगर हां,देखो,सबने कहे रखती हूँ कि मैं लमिनियांके हाथका जल पिऊँगी। गोरा की मां उतर कर नीचे चली गई। विनय चुपचाप कुछ देर तक स्वड़ा रहा, उसके बाद उसने धीरे धीरे कहा-गोरा, यह तो मुके कुछ ज्यादती जान पड़ती है । गोरा--ज्यादती ! किसकी ? विनय-तुम्हारी गोरा–ना, रत्ती भर भी नहीं। जहाँ जिसको सीमा है, उसे उसीके भीतर रखकर मैं चलना चाहता हूँ। किसी बहानेसे सुईकी नोक भर भी भूमि छोड़ना शुरू करनेसे अन्तको फिर कुछ भी नहीं बाकी बजानने? विनय-लेकिन फिर भी वह माँ हैं ! गारा-माँ क्रिले कहते हैं, माँका क्या महत्व है, सो मैं खूब अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे क्या इसकी याद दिलाने की जरूरत होगी । मेरी माँ जैसी कितने लोगोंको है ! लेकिन जो मैं सदाचारको न मानना शुरू कर दूं। तो शायद एक दिन माँको भी न मानें गा । देखो विनय तुम से एक बात कहता हूँ. याद रक्लो-हृदय एक अच्छी चीज है, लेकिन सवोपरि नहीं है। विनयने कुछ देर बाद जरा संकोच के साथ कहा---- देखो गोरा, आज माँकी बातें सुनकर मेरे हृदयके भीतर एक तरहकी हलचल सी हो रही है। मुझे जान पड़ता है, माँ के मन में कोई बात ऐसी है, जिसे वह किसी कारणसे खोलकर हमें समझा नहीं सकती, और इसके लिए उन्हें कष्ट हो रहा है। गोरा ने अधीर होकर कहा ..आः विनय, कल्पनाको लेकर उसके