पृष्ठ:गोरा.pdf/२३८

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। [३२] विनय उसी समय आनन्दमयीके परको चला । उस समय आनन्दमयी वैसे ही नहाकर दालानके फर्श पर प्रासन बिछाये स्थिर भावसे बैठी थीं, शायद मनमें जप कर रही थी। विनय चटपट उनके पैरों पर लोट कर बोला-माँ ! आनन्दमयीने उसके मस्तक पर दोनों हाथ फेरकर कहा-विनय ! माताके से ऐसे स्निग्धकंट स्वर को सुनकर विनयके सारे शरीरमें करुणाके स्पर्शका अनुभव हो गया। उसने कष्टसे ऑनुओंको रोक कर कोमल त्वरमें कहा-भाँ, मुझे आने में देर हो गई। आनन्दमर्याने कहा--में सव बातें सुन चुकी हूँ विनय ! विनय चौंककर बोला-सव बातें सुन चुकी हो! गोराने हवालातसे ही उन्हे पत्र लिखकर अपने मित्र वकीलकी मार्फत भेज दिया था। उसने निश्चित रूपसे अनुमान कर लिया था कि वह अवश्य जेल जायगा। उसने पत्रके अन्तमें लिखा था- -"कारागार-निवास तुम्हारे गोराको रत्ती मर हानि न कर सकेगा। किन्तु तुम जरा भी कष्ट पाओगी, तो ठीन न होगा। तुम्हारा दुख-ही बस मेरा दण्ड होगा, मुझे और कोई भी दण्ड देनेकी शक्ति मैजिस्ट्रेट में नहीं है। अकेले अपने ही लड़केकी बात न सोचना माँ ! और भी अनेक माताओंके लड़के विना दोषके जेल भुगदते रहते हैं। एक बार उनके साथ, उनके कष्टके समान क्षेत्रमें खड़े होनेकी मेरी इच्छा हुई है। यह इच्छा अगर इस दफे पूर्ण हो, तो तुम मेरे लिए शोक या दुख न करना।" "मां" नहीं जानता तुम्हें याद है कि नहीं, उस मर्तबा अकालके २३८