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गोरा

। गोरा [ २६ माल सड़क के किनारे वाली अपनी बैठकमें टेबिल पर रुपयोंकी थैली रख कर मैं चार-पाँच मिनट के लिए भीतर चला आया था। लौट कर देखा येली नदारद ? कोई चुरा ले गया था। थैलीमें मेरे स्कालरशिपके जमा किये ८५) रुपये थे। मेरा इरादा था, और कुछ रुपये जमा होजाने पर तुम्हारे पैर धोनेके जलके लिए एक चांदीका लोटा बनवा दूंगा । रुपये चुराये जाने के बाद जब मैं चोरके ऊपर व्यर्थके क्रोधसे बल रहा था, उस समय ईश्वरने एकाएक मुझे मुमति दी। मैने मनमें कहा जो व्यक्ति मेरे रुपये ले गया है, उसीको आज दुर्भिक्षके दिनोंमें मैंने वे रुपये दान कर दिये। जैसे यह कहा, वैसे ही मेरे मनका सारा दुःख शान्त हो गया ! आज भी अपने मनसे मैंने उसी तरह कहलाया है कि मैं खेच्छासे ही जेल जा रहा हूं मेरे मनमें कोई कष्ट नहीं है, किसी के ऊपर क्रोध नहीं, हैं। जेलमें अतिथि सत्कार करने चला हूँ । यहाँ आहार -विहारका कष्ट है तो कुछ हर्ज नहीं। अवकी इस यात्रा में भ्रमण के समय अनेक घरोमें अतिथि हुअा हूँ-वहाँ भी तो अपने अभ्यास और आवश्यकता के माफिक बाराम नहीं पाया ? इच्छा करके जान बूझ कर, हम जिसे स्वीकार करते है, वह कट तो ऋट ही नहीं है। जेलके श्राश्य को आज मैं अपनी इच्छा से ही ग्रहण करूँगा। जब तक मैं जेलमें रहूंगा, एक दिन भी कोई मुझे जबर्दी नहीं रक्खेगा यइ तुम निश्चय जानो। पृथ्वी पर जब हम घरमें बैठकर अनायास आहार विहार करते थे नव नित्यक अभ्यासके कारण इसका अनुभव भी नहीं कर पाते थे कि वाहरके अाकाश और प्रकाशमें बिना किसी वाधाके घूमने-फिरनेका अधिकार कितना बड़ा अधिकार है; और उसी समयमें पृथ्वीके जो बहुतसे मनुष्य अपराध और बिना अपराधके ईश्वरके दिये विश्वके अधिकार (स्वतंत्रता) से वजिचत होकर बन्धन और अपमान भोग रहे थे उनके सम्बन्धमें आज तक मैंने नहीं. सोचा---उनके साथ कुछ भी सम्बन्ध नहीं रक्सा । अनकी मैं उनके साथ समान रूपसे दागी होकर कारागारसे वहार निकलना चाहता हूं। पृथ्वीके अधिकाँश बनावी भले आदमी जो शरीफ या