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२४० ]
गोरा

२४० ] गोरा प्रतिष्टित बने बैठे हैं, में उनके दलमें घुसकर सन्नान बचा कर चलना नहीं "चाहता। "माँ ! इस बार पृथ्वीके साथ परिचय होने से मुझे बहुत शिक्षा मिल गई है । पृथ्वी तल पर जिन्होंने विचारका भार अपने ऊपर ले रखा है उनमें अधिकाँश ऐसे हैं जो कृपा के पात्र हैं। जो लोग दरड नहीं पाते और दण्ड देते हैं उन्हींके पापकी सजा जेलके कैदी भोग करते हैं। अपराध तो अनेक मिलकर गढ़कर खड़ा करते हैं और प्रायश्चित करते हैं वे ही। जो लोग जेलके वाहर पारामसे हैं सम्मानते हैं, नहीं जानता उन लोगोंके पापोंका क्षय कब, कहाँ और किस तरह होगा। मैं उसी श्राराम और सम्मानको लात मारकर ...धिकार, देवर-मनुष्य कलङ्कका चिन्ह हृदयमें धारण कर----जेलसे बाहर निकलूं गा ! माँ ! तुम मुझको आशीर्वाद दो तुम आंसू न गिराना।xxx" गोराका यह पत्र पाकर अानन्दमयीने महिनको उसके पास भेजनेकी चेष्टाकी थी पर मुझे आफिस जाना है साहब किसी तरह छुट्टी नही देंगे यह कहकर महिम गोराकी अविवेचना और उद्दण्डता आदि का बखान करता हुआ उसे यथेष्ट रूपसे भला बुरा कहने लगा । उसने यह भी कहा कि 'उसके कारण किसी दिन मेरी नौकरी तक चली जावगी।' श्रानन्दमयीने इस बारेमें कृष्णपदयाल वायूसे कोई बात कहना अनावश्यक या व्यर्थ समझा। गोराके सम्बन्धमें स्वामीकी उदासीनता उन्हें बहुत ही कृष्ठ देती थी। वह जानती थी, कृष्णदयालने गोराको अपने हृदयमें पुत्रका स्थान नहीं दिया। यहाँ तक कि उनके अन्तःकरण में गोरा के ऊपर एक बिरोधका भाव था। गौरा प्रानन्दनी के दाम्पत्य सम्बन्धको दो टुकड़े करके दोनों जनोंके बीच में विन्ध्याचलकी तरह खड़ा हुअा था । उसके एक अत्यन्त सतर्क शुद्धाचारको लेकर कृष्णदयाल अकेले थे, और दूसरी ओर अपने म्लेच्छ गोरा के लिये अकेली अानन्दमयी थी। गोराके जीवनका इतिहास पृथ्वी पर जो दो आदमी जानते हैं, उनके बीच में आने जाने की राह जैसे बन्द हो गई है। इन सब कारणले संसारमें गोरा के ऊपर