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गोरा

गोरा [ २४१ अानन्दमयीका स्नेह बिलकुल अकेले उन्हींको सम्पत्ति था । इस परिवार में गोराकी अनधिकार अवस्थितको वह सब ओरसे जितनी हलकी कर रखना सम्भव था, उसीकी चेष्टा करती थी। अानन्दमयीको नित्य यही चिन्ता रहती थी कि पीछे कोई यह न कहे कि तुम्हारे गोराके कारण यह हुआ, तुम्हारे गोराके कारण हमें यह बात सुननी पड़ी, अथवा तुम्हारे गोराने हमारा यह नुकसान कर डाला | गोराकी सब जिम्मेदारी तो उन्हींकी है। वह हटी, तेजस्वी और उद्दड गोरा है उसके अस्तित्वको छिपाकर रखना तो कोई सहज बात नहीं है । उसी अपनी गोद के पागल गोर को इस विरुद्ध परिवार के बीच अव तक दिन रात सम्भाले रहकर इतना बड़ा किया है इसमें उन्होंने ऐसी अनेक अप्रिय बातें सुनी हैं जिनका कोई जवाब नहीं दिया; ऐमे अनेक दुःख सहे है जिनका हिस्से- दार वह और किसोको नहीं बना सकी। अानन्दमयी चुपचाप होकर खिड़कीके पास बैठी रहीं। उन्होंने देखा, काग दयान्न बाबूने प्रातःकाल स्नान करके ललाट- गोपीचन्दनकी छाप लगा कर-मंत्र उच्चारण करने करने परमें प्रवेश किया। उनके पास श्रानन्दन्यी जा नहीं सी : नित्र, सर्वत्र ही निषेध है । अन्तको लम्बी सांस छोड़कर अानन्दनयों नहिनके कमरेमें गई। महिम उस समय फर्शके ऊपर बैटा अन्वबार बढ़ रहा था, और उसका नौकर नानके पहले उनके शरीरमें तेलकी मालिश कर रहा था । अानन्दमयीने महिमसे कहा--नहिन, तुम मेरे साथ एक श्रादनी कर दो , मैं जाकर गोराको देख आऊँ वह जेल जाने के लिए मनमें निश्चय किये बैठा है। अगर उसे जेलकी सजा हो गई तो क्या मैं उसके पहले एक बार उसको देख भी न पा सकेंगी? महिमका अपरका व्यवहार गोराके बारे में चाहे जैसा हो भीतर इसके हृदयमें गोराके प्रति एक प्रकार का भ्रातृ-नेह अवश्य था। उसने मुँहसे गरजकर यह अवश्य कहा कि "जाय अभागा जेलका । अब तक जेल नहीं गया वह यही आश्चर्य हैं।" किन्तु यह कहने के बाद ही मा० नं. १६